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२०६ नथा हि
समयसार
हारेण दु यादा करेदि धडपडरथाणि दव्वाणि । करण यि कम्माण य खोकम्माणीह विविहाणि ॥६८॥ व्यवहारमात्रसे यह प्रात्मा करता घटावि द्रव्योंको ।
करणोंको कर्मोंको नोकर्मीको बताया है ||८||
व्यवहारेण त्वात्मा करोति घटपटरथान् द्रव्याणि । करणानि च कर्माणि च नोकर्माणीह विविधानि ॥६८॥ araहारिणां हि यतो यथायमात्मात्मविकरूपव्यापाराभ्यां घटादिपरद्रव्यात्मकं बहिःकर्म कुर्वन् प्रतिभाति ततस्तथा क्रोधादिपरद्रव्यात्मकं च समस्तमंतःकर्माणि करोत्यविशेषादित्यस्ति व्यामोहः ॥६८॥
करना !! ६८ ॥
नामसंज्ञ - बवहार, दु, अत्त, धडपडरथ, दव्व, करण, य, कम्म, य, शोकम्म, इह, विविह । धातुसंश- कर करणे । प्रकृतिशब्द-व्यवहार, तु, आत्मन्, घटपटरथ, करण, च, कर्मन, च, नोकर्मन् इह, विविध मूलधातु-वि-अवन्त्र हरणे, घट संघाते चुरादि, पट गतौ भ्वादि । पदविवरण- व्यवहारेणतृतीया एक० । तु-अव्यय । आत्मा-प्रथमा एक० 1 करोति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । घट पटरथाणि द्वितीया बहु० । द्रव्याणि द्वितीया बहु० कर्मकारक । करणाणि द्वितीया बहु० । च- अव्यय । कर्माणि द्वि० बहु० । च-- अ० । नोकर्माणि द्रि० बहु० । हह-अव्यय । विविधानि द्वितीया बहुवचन ॥१६८ || पट आदिको करनेका प्ररूपण किस प्रकार है इसके समाधान में यह गाथा आई है ।
तथ्यप्रकाश - ( १ ) श्रात्मा घटपट श्रादि परद्रव्योंको करता है यह उपचार से कहा जाता है । ( २ ) इस उपचार में यद्यपि निमित्तनैमित्तिक परम्परा है तो भी निश्चयदृष्टिसे मिथ्या है। ( ३) आत्मा कर्म नोकर्म व इन्द्रियोंको करता है यह कथन भी उपचारसे है । ( ४ ) आत्माकी कर्म में निमित्तता, नोकर्मादिमें निमित्तनिमित्तता आदि सम्बन्ध होनेपर भी जीवसे प्रत्यन्त भिन्न द्रव्य होनेसे निश्चयसे यह उपचारकथन मिथ्या है ।
सिद्धान्त -- ( १ ) आत्मा घटपट आदि परद्रव्यको करता है यह उपचार कथन है । (२) आत्मा कर्म नोकर्मको करता है यह भी उपचार कथन है ।
दृष्टि - १ - प्रसंश्लिष्टविजात्युपचरित असद्भूतव्यवहार (१२६) । २ - संश्लिष्ट विजात्थुपचरित प्रसद्भूतव्यवहार (१२५) ।
प्रयोग - श्रात्मा परभावका कर्ता है इस वार्ताको मोहनेष्टामात्र जानकर इस प्रज्ञानको छोड़कर प्रकारण कार्य अविकार सहज ज्ञानस्वरूपमें रुचि करके संकष्टमुक्तिका पीरुष
यह व्यवहारका मानता परमार्थदृष्टिमें सत्यार्थ नहीं है - [ यदि ] यदि [सः ] वह