________________
कर्तृ कर्माधिकार
२०१ स्सरणतया तथाविधस्य भावस्य कर्ता प्रतिभाति । तथायमात्माप्यज्ञानाद ज्ञेयज्ञायको परात्मानावेकोकुर्वन्नात्मनि परद्रव्याध्यासान्नोइंद्रियविषयीकृतधर्माधर्माकाशकालपुद्गलनीवांतरनिरुद्धशुद्धचैतन्यधातुतया तथेन्द्रियविषयीकृतरूपिपदार्थतिरोहितकेवलबोधतया मृतककलेवरमूछितपरमामृतविज्ञानधनतया च तथाविधस्य भावस्य कर्ता प्रतिभाति ॥६६|| पर-द्वितीया एक० । करोति-वर्तमान लद अन्य पुरुष एक० किया । अज्ञानभावेन-तृतीया एकवचन करणकारक ॥६६॥
प्रयोग - परमशान्ति पानेके लिये परद्रव्योंसे अत्यन्त भिन्न अपने चैतन्यस्वरूपमात्र अपनेको अनुभवना चाहिये ॥६६॥
अब कहते हैं कि इसी कारणसे यह ठीक रहा कि शानसे कर्तृत्वका नाश होता है[एतेन तु] इस पूर्वकथित कारणसे [निश्चयविद्धिः] निश्चयके जानने वाले ज्ञानियोंके द्वारा [स प्रात्मा] वह प्रोत्मा [कर्ता परिकथितः] कर्ता कहा गया है [एवं खलु] इस प्रकार निश्चयसे [यः] जो [जानाति] जानता है [सः] वह ज्ञानी हुमा [सर्वकर्तृत्वं] सब कर्तृत्व को [मुचति] छोड़ देता है।
तात्पर्य-परद्रव्यभावके कयापिकल्पको अमानलीला रामझ लेनेवर अखबुद्धि हट जाती है।
. टीकार्य—जिस कारणसे यह प्रात्मा प्रज्ञानसे परके और आत्माके एकत्वका विकल्प करता है, उस कारणसे निश्चयसे कर्ता प्रतिभासित होता है, ऐसा जो जानता है, वह समस्त कर्तृत्वको छोड़ देता है, इस कारण वह प्रकर्ता प्रतिभासित होता है । यही स्पष्ट कहते हैंइस जगतमें यह प्रात्मा अशानी हुआ प्रशानसे अनादि संसारसे लगाकर पुद्गल कर्मरस और अपने भावके मिले हुए प्रास्वादका स्वाद लेनेसे जिसकी अपने भिन्न अनुभवकी शक्ति मुद्रित हो गई है, ऐसा अनादिकालसे हो है, इस कारण वह परको और अपनेको एकरूप जानता है। इसी कारण मैं क्रोध हूं इत्यादिक विकल्प अपनेमें करता है, इसलिए निर्विकल्प रूप अकृत्रिम अपने विज्ञानधनस्वभावसे भ्रष्ट हुमा बारम्बार अनेक विकल्पोंसे परिणमन करता हुया कर्ता प्रतिभासित होता है। और जब ज्ञानी हो जाय, तब सम्यग्ज्ञानसे उस सम्यग्ज्ञानको प्रादि लेकर प्रसिद्ध हुमा जो पुद्गलकर्मके स्वादसे अपना भिन्न स्वाद, उसके मास्वादनसे जिसकी भेदके अनुभवको शक्ति प्रकट हो गई है, तब ऐसा जानता है कि अनादिनिधन निरंतर स्वादमें प्राता हुआ समस्त अन्य रसके स्वादोंसे विलक्षण, अत्यन्त मधुर एक चैतन्यरस स्वरूप तो यह मात्मा है, और कषाय इससे भिन्न रस हैं, कषैले हैं, बेस्वाद हैं, उनसे युक्त एकत्वका जो विकल्प करना है; वह अज्ञानसे है । इस प्रकार परको और आत्माको पृथक्-पृथक् नानारूपसे