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कर्तृकर्माधिकार
श्रथात्मनस्त्रिविधपरिणामविकारस्य कर्तृत्वं दर्शयति
एए योगो तिविहो सुद्धो जिणो भावो । जं सो करेदि भावं उपयोगी तस्स सो कत्ता ॥६०॥
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शुद्ध निरंजन भी यह उन तीनोंके प्रयोग होनेपर ।
जिन भावोंको करता, कर्ता उपयोग उनका है ॥६॥
नामसंज्ञ--- एत, य, उवओोग, तिविह, सुद्ध, णिरंजण, भाव, ज, स, भाव
एतेषु श्रोपयोगस्त्रिविधः वृद्धो निरंजनो भावः । यं स करोति भावमुपयोगस्तस्य स कर्ता ||६|| श्रथैव मयमनाविवस्त्वंतरभूत मोहयुक्तत्वादात्मन्युत्प्लवमानेषु मिथ्यादर्शन ज्ञानाविरतिभापरिणामविकारेषु त्रिष्वेतेषु निमित्तभूतेषु परमार्थतः शुद्धनिरंजनानादिनिधन वस्तु सर्वस्व उवओग, त, त, कतार । धातुसंज्ञ सुक नैमंल्ये, कर करणे । प्रकृतिशब्द- एतत् न, उपयोग, त्रिविध शुद्ध, निरंजन, भाव, यत्, तत्, भाव, उपयोग, तत् तत् कर्तृ । मूलधातु — शुध शौचे दिवादि, निर अज्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु जुहोत्यादि विध विधाने, डुकृञ् करणे, उप-युजिर् योगे । पद विवरण- एतेषु सप्तमी बहु०, च-अव्यय, मिथ्यात्व अज्ञान, प्रविरति इन तीनोंके निमित्तभूत होनेपर ! [ त्रिविधः भाथ: ] मिथ्यादर्शन, अज्ञान, श्रविरति इस तरह तीन प्रकार परिणाम वाला होता है । [सः ] सो वह भ्रात्मा [यं ] इन तीनों में से जिस [भावं] भावको [ करोति ] स्वयं करता है [ तस्य ] उसीका [सः ] वह [कर्ता ] कर्ता [ भवति ] होता है ।
टीकार्थ व पूर्वोक्त प्रकारसे अनादि प्रत्यवस्तुभूत मोहसहित होनेसे प्रारभा में उत्पन हुए जो मिध्यादन, प्रज्ञान, प्रविरति भावरूप तीन परिणाम विकार उनके निमित्तभूत होनेपर, यद्यपि श्रात्माका स्वभाव परमार्थसे देखा जाय तो शुद्ध, निरंजन, एक अनादिनिधन वस्तुका सर्वस्वभूत चैतन्यभावरूपसे एक प्रकार है, तो भी अशुद्ध सांजन अनेक भावपतेको प्राप्त हुमा तीन प्रकार होकर प्राप प्रज्ञानी हुआ कर्तृस्वको प्राप्त होता हुआ विकार रूप परिणामसे जिस जिस भावको आप करता है, उस उस भावका उपयोग निश्वयसे कर्ता होता है ।
भावार्थ-- पहले कहा था कि जो परिणमता है, वह कर्ता है सो यहाँ अज्ञानरूप हो कर उपयोगसे जिस रूप परिणमन करता है, उसीका कर्ता कहा जाता है । शुद्ध द्रव्याकिनम से श्रात्मा कर्ता नहीं है । यहाँ उपयोगको कर्ता कहा, उपयोग और प्रारमा एक ही वस्तु है, इसलिये आत्माको हो कर्ता जानना ।
प्रसंगविवरण -- प्रनन्तरपूर्व गाथामें बताया था कि मोहयुक्त उपयोगके तीन प्रकारके विकृत परिणाम होते हैं उन्होंने विषयमें इस गावामें बताया गया है कि उनका निश्वयसे कर्ता कौन है ?