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समयसार परिणामं पुद्गलादब्यतिरिक्तं पुद्गलादव्यतिरिक्तया परिणतिमात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाण प्रतिभातु । यः परिणमति स कर्ता यः परिणामो भवेत्तु तत्कर्म । या परिणतिः क्रिया सा श्रयमपि भिन्नं न वस्तुतया ।।५१।। एक: परिणमति सदा परिणामो जायते सदैकस्य । एकस्य परिणतिः स्यादनेकमप्येकमेव यतः ॥५२।। नोभी परिणमत: खलु परिणामो नोभयोः प्रजायेत । आत्मभावं-द्वितीया एक० । पुद्गलभाव-द्वितीया एक० । च-अव्यय । द्वी-द्वितीया द्विवचन । अपि-अव्यय । कुर्वन्ति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष बहुवचन क्रिया । तेन-हेत्यर्थे तृतीया एक० । तु-अव्यय । मिथ्यादृष्टयःपरिणामको भी नहीं उपजातीं और एक क्रिया भी उनकी नहीं होती, ऐसा नियम है । यदि दो द्रव्य एकरूप होकर परिणमन करें तो सब द्रव्योंका लोप हो जायगा ।
अब इसी अर्थको दृढ़ करते हैं- नकस्य इतयादि । अर्थ- एक द्रव्यके दो कर्ता नहीं होते, एक द्रव्यके दो कर्म नहीं होते और एक द्रव्यको दो क्रियायें भी नहीं होती, क्योंकि एक प्रद अनेक द्रज्यस्य नहीं होता। भावार्य--प्रत्येक द्रव्य अकेला ही अपने आपमें अपनी परिरगति करता है।
प्रब अज्ञानविलय व बन्धविलयको भावना करते हैं--प्रासंसारत इत्यादि । अर्थइस जगतमें मोही अज्ञानी जीवोंका यह "मैं परद्रव्यको करता हूं" ऐसा परद्रव्यके कर्तृत्वका अहंकार रूप अत्यन्त दुनिवार प्रज्ञानांधकार अनादि संसारसे लेकर चला पाया है। यदि पर. मार्थ अभेद नयके ग्रहणसे वह एक बार भी नष्ट हो जाय तो शानधन प्रात्माको फिर कैसे बंध हो सकता है ? भावार्थ- अज्ञान तो अनादिका हो है, परन्तु परमार्थनयके ग्रहणसे यदि दर्शनमोहका नाश कर एक बार यथार्थ ज्ञान होकर क्षायिकसम्यक्त्व उत्पन्न हो जाय तो फिर मिथ्यात्व नहीं पा सकता तब उस मिथ्यात्वका बंध भी नहीं हो सकता और मिथ्यात्व गये बाद संसार-बंधन कसे रह सकता है ? उसका तो मोक्ष ही होगा।
और भी कहते हैं--प्रात्म इत्यादि । अर्थ-मात्मा तो पपने भावोंको ही करता है और परद्रध्य परके भावोंको करता है । क्योंकि अपने भाव तो अपने ही हैं तथा परभाव परके ही हैं। भावार्थ-प्रात्माका परमें कर्तृत्व नहीं, फिर भी परमें कर्तृत्व माने तो वह
प्रसंगविवरण---अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि एक द्रव्यको दो क्रियावोंका अनुभव करना बताना मिथ्यात्व है । अब उसी सम्बन्धमें पूछा गया कि दो क्रियावोंका अनुभव करने वाला बताना मिथ्यादृष्टि क्यों है ? इसका समाधान इस माथामें दिया गया है।
तभ्यप्रकाश-(१) कोई द्रव्य अपना भी परिणमन करे व दूसरेका भो परिणमन करे ऐसी मान्यता मिथ्यात्व है, क्योंकि ऐसा कभी भी होता नहीं । (२) जो पदार्थ परिणमता