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कर्तृकर्माधिकार तिमात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाणः प्रतिभाति । तथात्मापि पुद्गलकमंपरिणामानुकूलमज्ञानादात्मपरिणाममात्मनोऽव्यतिरिक्तमात्मनोऽव्यतिरिक्तया परिणतिमात्रया क्रियया क्रियमारणं कुर्वाणः प्रतिभातु मा पुनः पुद्गलपरिणामकरणाहकारानभरोपि स्वपरिणाभानुरूप पुद्गलस्य मिथ्या दृष्टि, द्विक्रियावादिन् । मूलधातु- डुकृत्र करणे, वद व्यक्तायां याचि भ्यादि, बद संदेशवचने चुरादि, दृशिर् प्रेक्षणे, भू सत्तायां । पदविवरण-~-यस्मात्-हेत्वर्थे पंचमी एकवचन । तु-अव्यय । अभिन्न अपनी परिणतिमात्र क्रियासे किये हुए प्रात्मपरिणामको करता हुआ प्रतिभासित होवे, परन्तु पुद्गलपरिणामके करनेके अहंकारसे युक्त होनेपर भी स्वपरिणामके अनुकूल, पुदगलसे अभिन्न तथा पुद्गलसे अभिन्न पुद्गलकी परिणतिमात्र क्रियासे किये हुए पुदगलके परिणामको करता हुअा अात्मा मत प्रतिभासो।।
भावार्थ-प्रात्मा अपने ही परिणामको करता हुप्रा प्रतिभासित होवे, पुद्गलके परिणामको करता हुप्रा प्रतिभासित नहीं होवे । प्रात्मा और पुद्गल इन दोनोंकी क्रियायें एक अात्माको हो मानने वाला मिथ्यादृष्टि है । यदि जड़ और चेतनको एक क्रिया हो जाय, तो सर्वद्रव्य पलटनेसे सबका लोप हो जायगा, यह बड़ा भारी दोष है।
अब इसी प्रर्थके समर्थनका कलशरूप काव्य कहते हैं-यः परिणमति इत्यादि । अर्थ--जो परिणमन करता है, वह कर्ता है और उसका परिणाम कर्म है तथा परिणति किया है । ये तीनों ही वस्तुत्वसे भिन्न नहीं हैं। भावार्थ - द्रव्यरष्टिसे परिणाम और परि. णामीमें अभेद है तथा पर्यायदृष्टिसे भेद है । वहाँ भेवदृष्टिसे तो कर्ता कर्म भोर क्रिया ये तीन कहे गये हैं और अभेददृष्टि से वास्तव में यह कहा गया है कि कर्ता, कर्म और क्रिया---ये तीनों हो एक द्रव्यको अवस्थायें हैं, वे प्रदेशभेदरूप भिन्न वस्तु नहीं हैं।
__ और भी कहते हैं--एकः इत्यादि । अर्थ--वस्तु अकेली ही सदा परिणमन करती है, एकके ही परिणाम होते हैं अर्थात एक अवस्थासे अन्य अवस्था होती है । तथा एकको ही परिणति (क्रिया) होती है। यों वस्तु अनेकरूप हुई तो भी वह एक ही वस्तु है, भेद नहीं है । भावार्थ-एक बस्तुको अनेक पर्याय होती हैं, उनको परिणाम भी कहते हैं, अवस्था भी कहते हैं । वे संज्ञा, संख्या, लक्षण, प्रयोजनादिकसे भिन्न-भिन्न प्रतिभास रूप हैं, तो भी एक बस्तु ही हैं, भिन्न नहीं हैं, ऐसा भेदाभेदस्वरूप ही वस्तुका स्वभाव है ।
फिर कहते हैं--नोमो इत्यादि । प्रर्य--दो द्रव्य एक होकर परिणमन नहीं करते और दो द्रध्यका एक परिणाम भी नहीं होता तथा दो द्रव्यकी एक परिणति (क्रिया) भी नहीं होती । क्योंकि जो अनेक द्रव्य हैं, वे अनेक ही हैं, एक नहीं होते । भावार्ष-दो वस्तुयें सर्वथा भिन्न हो हैं, प्रदेशभेदरूप ही हैं, दोनों एकरूप होकर नहीं परिणमन करती, एक