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समयसार कुतो द्विक्रियानुभावी मिथ्यादृष्टिरिति चेत्
जमा दु अत्तभावं पुग्गलभावं च दोवि कुब्बति । तेण दु मिच्छादिही दोकिरियावादिणो हुति ॥८६॥ चूकि उक्त मतहटमें, प्रात्माने स्वपरभाव कर डाला।
सो दोकिरियावादी, मिथ्यादृष्टो हि होते थे ॥८६॥ यस्मात्त्वात्मभानं पुद्गलभावं च द्वापि कुर्वति। तेन तु मिथ्यादृष्टयो द्विक्रियावादिनो भवति ॥८६॥
यतः किलात्मपरिणामं पुद्गलपरिणामं च कुर्वतमात्मानं मन्यते द्विक्रियावादिनस्ततस्ते मिथ्यादृष्टय एवेति सिद्धांतः । मा चैकद्रव्येण द्रव्यद्वयपरिणामः क्रियमाणः प्रतिभातु । यधा किल मुलालः कलशसंभवानुकूलमात्मव्यापारपरिणाममात्मनोऽव्यतिरिक्तमात्मनोऽव्यतिरिक्तया परिणतिमात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाणः प्रतिभाति न पुनः कलशकरणाहकारनिर्भरोपि स्वव्यापारानुरूपं मृत्तिकायाः कलशपरिणामं मृत्तिकायाः अव्यतिरिक्तं मृत्तिकायाः प्रव्यतिरिक्तया परिण
नामसंश-ज, दु, अत्तभाव पुग्गल भाव, च, दु, वि, त, दु, मिच्छादिवि, दोकिरियावादिण् । धातुसंश-कुव्व करणे, हो सत्तायां । प्रातिपरिक-यत्, तु, आत्मभाव, पुद्गलभाव, च, द्वि, अपि, तत्, तु,
प्रयोग-पुद्गलकर्मके द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे निराला प्रपना अन्तस्तत्त्व निरखकर इस निजमें ही शानदृत्ति बनाये रहनेका पौरुष करना ॥८॥
यहाँ प्रश्न उठता है कि दो क्रियानोंका अनुभव करने वाला पुरुष मिथ्यादृष्टि कैसे हो सकता है ? उसका समाधान करते हैं-[यस्मात तु] जिस कारण [प्रात्मभावं] प्रात्माके भावको [च] और [पुमलभावं] पुद्गलके भावको [द्वौ अपि] दोनों ही को प्रात्मा [कुर्वन्ति] करते हैं ऐसा कहते हैं [तेन तु] इसी कारण [द्विक्रियावादिनः] दो क्रियायोको एकके ही कहने वाले [मिथ्यादृष्टयः] मिथ्यादृष्टि ही [भवंति] हैं।
टीकार्य-चूंकि द्विक्रियावादी प्रात्मा और पुद्गल दोनोंके परिणामोंका कर्ता प्रात्मा को मानते हैं, इस कारण वे मिथ्यादृष्टि हो हैं, ऐसा सिद्धान्त है । सो एक द्रव्यके द्वारा दोनों द्रव्योंका परिणमन किया जा रहा है, ऐसा मुझे प्रतिभासित मत होवे । जैसे कुम्हारके घड़े के होनेके अनुकूल अपना व्यापाररूप हस्ताद्रिक क्रिया तथा इच्छारूप परिणाम अपनेसे अभिन्न सया अपनेसे अभिन्नपरिणतिमात्रक्रियासे किये हुएको करता हुआ प्रतिभासित होता है और घट बनानेके अहंकारसे सहित होनेपर भी स्वव्यापारके अनुकूल मिट्टीसे अभेदरूप तथा मिट्टीसे मभिन्न मृत्तिकापरिणतिमात्र क्रिया द्वारा किये हुए मिट्टोके घटपरिणामको करता हुआ नहीं मालूम होता । उसी प्रकार प्रात्मा भी प्रज्ञानसे पुद्गलकर्मके अनुकूल अपनेसे अभिन्न, अपनेसे