________________
१५८
कयमात्मा ज्ञानीभूतो लक्ष्यत इति चेत् -
समयसार
कम्मरस य परिणामं णोकम्मस्स य तहेव परिणामं । करेइ एयमादा जो जादि सो हवदि खागी ॥७५॥ कर्म तथा नोकर्मों के परिणामको जीव नहिं करता ।
यो सत्य मानता जो, यह सम्यग्दृष्टि हो ज्ञानी ।। ७५ ।।
कर्मणश्च परिणाम नोकर्मणश्च तथैव परिणाम । न करोत्येनमात्मा यो जानाति स भवति ज्ञानी ॥७५॥ यः खलु मोहरागद्वेषसुखदुःखादिरूपेणांत रुत्प्लवमानं कर्मणः परिणाम स्पर्शरसगंधव - शब्दबंध संस्थान स्थौल्यसौक्ष्म्यादिरूपेण बहिरुत्प्लवमानं नोकर्मणः परिणामं च समस्तमपि परमार्थतः पुद्गल परिणाम पुद्गलयोरेव घटमृत्तिकयोरिव व्याप्यव्यापकभावसद्भावात् गलद्रव्येण कर्जा स्वतंत्र व्यापकेन स्वयं व्याप्यमानत्वात्कर्मत्वेन क्रियमाणं पुद्गल परिणामात्मनोर्घटकुंभकारयोरिव व्याप्यव्यापकभावाभावात् कर्तृकर्मत्वासिद्धी न नाम करोत्यात्मा । किंतु परमार्थतः
नामसंज्ञ - कम्म, य, परिणाम, णोकम्म य, तह एव परिणाम, ण, एय, अत्त, ज, व, णणि धातुसंज्ञ - कर करणे, जाण अवबोधने, हव सत्तायां । प्रातिपदिक-कर्मन् च, परिणाम, नोकर्मन् च, होने वाले कर्मके परिणामको और स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द, बंध, संस्थान, स्थौल्य, सूक्ष्म आदि रूपसे बाहर उत्पन्न होने वाले नोकर्मके परिणामको नहीं करता है, किन्तु उनके परिण मनोंके ज्ञानरूपसे परिणममान अपनेको हो जानता है, ऐसा जो जानता है वह ज्ञानी है । इसका विवरण इस प्रकार है-ये मोहादिक चे स्पर्शादिक परिणाम परमार्थतः पुद्द गलके ही हैं । सो जैसे घड़ेके और मिट्टी के व्याप्य व्यापकभाव के. सद्भावसे कर्ता कर्मपता है, उसी प्रकार वे पुद्गलद्रव्यसे स्वतंत्र व्यापक कर्ता होकर किये गये हैं और वे श्राप अंतरंग व्याप्य रूप होकर व्याप्त हैं, इस कारण पुद्गलके कर्म हैं । परंतु पुद्गलपरिणाम और आत्माका घट और कुम्हारकी तरह व्याप्यव्यापक रूप नहीं है, इसलिये कर्ताकत्वकी प्रसिद्धि है । इसी कारण कर्म व नोकर्मके परिणामको श्रात्मा नहीं करता । किन्तु परमार्थसे पुद्गलपरिणाम विषयक ज्ञानका और पुद्गलका घट और कुम्हारकी तरह व्याप्यव्यापकभावका प्रभाव है, अतः उन दोनोंमें कर्ता-कर्मत्वको सिद्धि न होनेपर श्रात्मपरिणामके और श्रात्माके es मृतिकाकी तरह व्याप्यव्यापक भावके सद्भावसे श्रात्मद्रव्य कर्ताने श्राप स्वतंत्र व्यापक होकर ज्ञाननामक कर्म किया है, इसलिये वह ज्ञान श्राप ही आत्मासे व्याप्यरूप होकर कर्मरूप हुआ है, इसी कारण पुद्गल परिणामविषयक ज्ञानको कर्म ( कर्मकारक ) रूपसे करते हुए आमाको आप जानता है, ऐसा आत्मा पुद्गलपरिणामरूप कर्म नोकर्मसे अत्यंत भिन्न ज्ञान