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समयसार कुतो जीवस्य वरदियो निश्चयेन न संतीति चेत् -
एएहिं य संबंधो जहेव खीरोदयं मुणेदब्बो । ण य हुँति तस्स ताणि दु उपयोगगुणाधिगो जम्हा ॥३७॥ भारतरवत् जामो, बहस सम्बन्ध बहिन भावोंसे ।
किन्तु नहिं जीयके थे, यह तो उपयोगमय न्यारा ॥५७। एतश्च सम्बंधो यथैव क्षीरोदकं ज्ञातव्यः । न च भवन्ति तस्य तानि, तूपयोगगुणाधिको यस्मात् ॥५७।।
यथा खलु सलिलमिश्रितस्य क्षीरस्य सलिलेन सह परसरावगाहलक्षणे संबंधे सत्यपि स्वलक्षणभूतक्षीरत्व गुणव्याप्यतया सलिलादधिकत्वेन प्रतीयमानत्वादग्नेरुष्णगुणेनेव सह तादात्म्यलक्षरणसंबंधाभावान्न निश्चयेन सलिलमस्ति । तथा वर्णादिपुद्गलद्रव्यपरिणाममिश्रितस्या
नामसंज-एत, य, संबंध, जह, एव, खीरोदय, व, य, त, त, दु, उवओगगुणाधिग, ज । धातुसंशसम्-बंध बंधने, मुण ज्ञाने, हो सत्तायां। प्रातिपदिक-एतत्, च, सम्बंध, यथा, एब, क्षीरोदक, ज्ञातव्य, साथ सम्बन्ध न होनेसे निश्चयसे दूधका जल नहीं है। उसी प्रकार वर्णादिक पुद्गलद्रव्यके परिणामोंसे मिला हुअा अात्मा पुद्गलद्रव्य के साथ परस्पर अवगाह स्वरूप संबंध होनेपर भी अपने लक्षणस्वरूप उपयोग गुणसे व्याप्त होनेके कारण सब द्रव्योंसे भिन्न प्रतीत होता है, इस कारण जैसे अग्निका और उष्णता गुणके साथ तादात्म्य स्वरूप संम्बन्ध है, उस प्रकार मात्माका वर्णादिकोंके साथ तादात्म्य संबन्ध नहीं है। इसलिये निश्चयनयसे ये वर्णादिक पुद्गलपरिणाम हैं, जीवके नहीं हैं।
प्रसंगविवरण-पनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि वर्ण प्रादिकसे लेकर गुणस्थानपर्यन्त भाव निश्चयनयसे जीवके नहीं हैं, सो अब उसी विषय में जिज्ञासा हुई है कि वर्णादिक भाव निश्चयनयसे जीवके क्यों नहीं हैं, इसी जिज्ञासाका समाधान इस गाथामें दिया गया है।
तथ्यप्रकाश-१-दूध और जलका मोटे रूपसे परस्पर अवगाह तो है, किन्तु संबन्ध संयोग सम्बन्ध है, तादात्म्य नहीं। २-अग्नि और उष्ण गुरणका सम्बन्ध तादात्म्य सम्बन्ध है । ३-संयोगसंबंध सम्बन्धो पदार्थ भिन्न-भिन्न हुमा करते हैं । ४-वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, संस्थान, संहनन मादि जिनका उपादान पुद्गल है उनका व जीवका वर्तमान संबंध परस्पर भवगाह होने पर भी मात्र संयोग संबंध है ५-भिन्नताका परिचय असाधारण मुरणसे होता है । -गुणस्थान, संयमस्थान, अध्यवसान प्रादि जिनका उपादान जीव है उन भावोंका जीव के साथ क्षणिक तादात्म्य संबंध तो है, किन्तु नैमित्तिक (पोद्गलिक) होनेसे, तुरन्त हट