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जीबाजीवाधिकार
१२१ भावं परस्य सर्वमेव प्रतिषेधयति । ततो व्यवहारेण वदियो गुणस्थानांता भावा जीवस्य संति निश्चयेन तु न संतीति युक्ता प्रज्ञप्तिः ॥५६॥ रेण-तृतीया एक० । तु-अव्यय । एते-प्र० बहु । जीवस्य-षष्ठी एक० । भवन्ति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष बहु० । वर्णाद्या:-प्र० ब० । गुणस्थानान्ता:-प्र० ब० । भावा:-प्रद० । न, तु, केचित्-अव्यय । अन्त:-प्र० ब०, निश्चयनयस्य -षष्ठी एक० ।।५६॥ इस प्रकार भगवानका कथन स्याद्वादसहित युक्तिपूर्ण है ।
प्रसंगविबरण---अनन्तरपूर्व गाथावोंमें बताया था कि वर्णादिक व अध्यवसानादिक पौद्गलिक हैं वे जीवके नहीं हैं तो इसपर एक प्राशङ्का होना प्राकृतिक है कि यदि ये वर्णादि भाव जीवके नहीं है तो सिद्धान्त ग्रन्थोंमें जीवके वे भाव हैं ऐसा क्यों वर्णन मिलता है ? इस प्राशङ्काके समाधान में इस गाथाका अवतार हुआ है।
तथ्यप्रकाश-(१) व्यवहारनय पर्यायदर्शक व भेददर्शक है । (२) निमित्तके परिण. मनोंको सम्बंधवश उपादानके कहनेका व्यवहार होता है । (३) निश्चयनय एक द्रव्यका दर्शक है । (४) जो निश्चयनय एक द्रध्यमें उसके पर्याय व गुणोंको दिखाता है वह भेदविधिकी मोर से व्यवहारनय बन जाता है ।
सिद्धान्त --(१) पर्ण स्थान हा ना क मारि जीवके उपचारसे कहे जाते हैं । (२) अध्यवसान गुणस्थान संयमस्थान आदि जीवके व्यवहारनयसे है । (३) शुद्धनय से जीवके वर्णादिक अध्यवसानादिक कोई भी चित्स्वभावातिरिक्त भाव नहीं हैं।
दृष्टि-१- एकद्रव्यपर्याये अन्यद्रव्योपचारक असद्भूतव्यवहार (१२१)। २- उपाधिसापेक्ष अशुद्धद्रव्याथिकनय (५३) । ३- शुद्धनय (४६)।
प्रयोग-पद्गलकर्मका निमित्त पाकर होने वाले विकारोंको कर्ममें थोपकर अपनेको शुद्ध चित्स्वभावमात्र अनुभवना चाहिये ।।५६।।
ये वर्णादिक निश्चयसे जीवके क्यों नहीं हैं ? इस प्रश्नका उत्तर कहते हैं;-[एतैः व संबन्धः] इन वर्णादिक भावोंके साथ जीवका सम्बन्ध [क्षीरोदकं यथेव] जल और दूधके एकत्रावगाहरूप सम्बन्धसदृश [ज्ञातव्यः] जानना [च] और [तानि] वे [तस्य तु न भवति] उस जीवके नहीं हैं [यस्मात] क्योंकि जीव [उपयोगगुणाधिकः] उपयोग मुणके कारण इनसे अधिक है । तात्पर्य ---ज्ञानमय प्रात्मा ज्ञानरहित सब पदार्थोंसे निराला है।
टोकार्य-जैसे जलसे मिला हुआ दूध जलके साथ परस्पर प्रधगाह स्वरूप संबंध होने पर भी अपने स्वलक्षणभूत क्षीरत्व गुणमें व्याप्त होनेके कारण दूध जलसे पृथक् प्रतीत होता है इस कारण जैसे अग्निका उष्णता गुण के साथ तादात्म्यसंबन्ध है, उस प्रकार दुधका जलके