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________________ समयसार यद्यवे सहि किलक्षणोऽसावेकष्टकोत्कीरणः परमार्थजीव इति पृष्टः प्राह असायमगंधं अध्यक्तं चेदणागुणामसद्द । जाण अलिंगरगहणं जीवमणिदिसंठाणं ॥४६॥ अरस अरूप अगंधी, अव्यक्त प्रशन्द चेतनापुरणमय । मिलानहरण पर स्वयं असंस्थान जीवको जानो ॥४६॥ अरसमरूपमगंधमव्यक्तं चेतनागुणमशब्दं । जानीहि अलिंगग्रहणं जीवनिर्दिष्टसंस्थान ॥४६॥ यः खलु पुद्गलद्रव्यादन्यत्वेनाविद्यमानरसगुणत्वात् पुद्गलद्रव्यगुरणेभ्यो भिन्नत्वेन स्वयमरसगुणत्वात् परमार्थतः पुद्गलद्र व्यस्वामित्वाभावात् द्रव्येन्द्रियावष्टंभेनारसनात् स्वभावतः क्षायोपशमिकभावाभावाद्भावेन्द्रियावलंबेनारसनात्, सकलसाधारणकसम्वेदनपरिणामस्वभावत्वाकेवलरसवेदनापरिणामापन्नत्वेनारसनात्, सकलज्ञेयज्ञायकतादातम्यस्य निषेधाद्रसपरिच्छेदपरिगातत्वेपि स्वयं रसरूपेणापरिणमनाचारसः । तथा पुद्गलद्रव्यादन्यत्वेनाविद्यमानरूपगुणत्वात् पुद्गलद्रव्यगुरणेभ्यो भिन्नत्वेन स्वयमरूपगुणतवात् परमार्थतः पुद्गलद्रव्यस्वामित्वाभावात् द्रव्येन्द्रियावष्टंभेनारूपणात्, स्वभावतः सायोपशमिकभावाभावाद्धावेन्द्रियावलम्बेनारूपणात्सकल नामसंक–अरस, अरूव, अगंध, अश्वत्त, चेदणागुणा, असद्द, अलिंगरगहण, जीव, अणिदिवसंठाण । भावसे केवल एक रसवेदना परिणामकी प्रप्ति रूप नहीं है, इस कारण भी प्ररस है ॥५॥ इसके समस्त ही ज्ञेयोंका ज्ञान होता है, परन्तु ज्ञेय ज्ञायकके एकरूप होनेका निषेध ही है, इसलिये रसके ज्ञानरूप परिणमनेपर भी प्राप रसरूप नहीं होता, इस कारण भी अरस है ।।६। इस प्रकार छः प्रकारसे रसके निषेधसे जीव परस है । (इसी तरह अरूप, अगंध, अस्पर्श, अशब्द--इन चारों विशेषणोंका छह-छह हेतुओं द्वारा निषेध किया है सो इसी उक्त रीतिसे जान लेना, विशेष यह है कि शब्द पर्याय है सो शब्दके साथ पर्याय कहना)। अब अनिर्दिष्टसंस्थानको कहते हैं। पुद्गलद्रव्यसे रचे हुए संस्थान (प्राकार) से ही जीवका संस्थान कहा नहीं जा सकता इस कारण, अपने नियत स्वभावसे नियत संस्थानरूप मनन्त शरीरों में बर्तता है इस कारण, संस्थान नामकर्मका विषाक (फल) पुद्गलद्रव्यमें ही है इस कारण, भिन्न-भिन्न प्राकाररूप परिणत जो समस्त वस्तु, उनके स्वरूपसे तदाकार हुए अपने स्वभावरूप सम्वेदनको सामर्थ्य होनेपर भी स्वयं समस्त लोकके संबलनसे शून्य हुई जो प्रपनी निर्मल ज्ञानमात्र अनुभूति उस अनुभूतिसे किसी भी प्राकाररूप नही है, इस कारण जीय अनिर्दिष्टसंस्थान है । ऐसे चार हेतुप्रोसे संस्थानका निषेध कहा । अब अव्यक्त विशेषण को सिद्ध करते हैं--छह द्रव्य स्वरूप लोक है, वह ज्ञेय है, व्यस्त है, ऐसे समस्त ज्ञेयसे
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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