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समयसार कइ अध्यवसानोंमें, जीव कहें तीवमंदफलततिको। कोई प्रात्मा माने, इन नाना रूप देहोंको ॥४०॥ कोई फर्मोदयको, जीव कहें कर्मपाक सुत-बुखको । तीन मंद अंशों में, जो नाना अनुभवा जाता ॥४१॥ जीव फर्म दोनोंको, मिला हुआ कोई जीवको जाने । अष्टकम संयोग हि, कितने ही जीतको मानें ॥४२॥ ऐसे नाना दुर्मति, परतत्त्वोंको हि प्रारमा कहते ।
वे न परमार्थवादी, ऐसा तत्वज्ञ दर्शाते ॥४३॥ आत्मानमजानंतो मूढास्तु परात्मवादिनः केचित् । जीवमध्यवसानं कर्म च तथा प्ररूपति ||३|| अपरेऽध्यवसानेषु तीव्रमदानुभागगं जीवं । मन्यते तथाऽपरे नोकर्म चापि जीव इति ॥४०॥ कर्मण उदय जीवमपरे कर्मानुभागमिच्छति । तीव्रत्वमंदस्वगुणाभ्यां य: स भवति जीवः ॥४॥ जीवकर्मोभयं द्वे अपि खलु केचिज्जीवमिच्छति । अपरे संयोगेन तु कर्मणां जीवमिच्छति ॥४२॥ एवंविधा बहुविधाः परमात्मानं वदंति दुर्मेधसः । ते न परमार्थवादिनः निश्चयवादिभिनिर्दिष्टाः ॥४३।। ।
इह खलु तदसाधारणलक्षणाकलनाक्लीबत्वेनात्यंतविमूढाः संतस्तात्त्विकमात्मानमाजनंतो बहदो बहुधा परमप्यात्मानमिति प्रलपंति । नैसर्गिकरागद्वेषकल्माषितमध्यवसानमेव जीवस्तथाविधाध्यवसानात् अंगारस्येव कादितिरिक्तत्वेनान्यस्यानुपलभ्यमानत्वादिति केचित् । संजोग, दु, कम्म जीव, एवं विह, बहुविह, पर, अप्प, दुम्मेह, त, ण, परमटुवादि, णिच्छयवादि, णिट्ठि । धातुसंज्ञ-मुझ मोहे, प-रूव घटनायां, मन्न अवबोधने तृतीयगणे, इच्छ इच्छायां, हर सत्तायां, वद व्यतायां वाचि । प्रकृतिशब्द-आत्मन्, अजानत्, मूढ, तु, परात्मवादिन, केचित् अन्तः प्रथमा बहु० अव्यय, ज्ञानावरणादि कर्मोके नाशसे विशुद्ध हुआ है, स्फुट हुमा है, जैसे फूलकी कली खिलती है, उस तरह विकाशरूप है। जिसके रमनेका क्रीडावन आत्मा ही है अर्थात् जिसमें अनंत ज्ञेयों (पदार्थों) के आकार पाकर झलकते हैं तो भी आप अपने स्वरूपमें ही रमता है, जिसका प्रकाश अनंत है, प्रत्यक्ष तेज द्वारा नित्य उदयरूप है धीर है, उदात्त है, इसीसे अनाकुल है सब इच्छाप्रोसे रहित निराकुल है। यहाँ धोर, उदात्त, अनाकुल ये तीन विशेषण शांतरूप नत्यके प्राभूषण जानने चाहिये । ऐसा ज्ञान विलास करता है ।
भावार्थ-यही ज्ञानकी महिमा कही । जीव अजीव एक होकर रंगभूमिमें प्रवेश करते हैं, उनको यह ज्ञान हो भिन्न जानता है । जैसे कोई नृत्यमें स्वांग धारण कर सो जाय उसे यथार्थ जो आने उसको स्वांग करने वाला नमस्कार कर अपना जैसाका तैसा रूप कर लेता है उसी तरह यहां भी जानना ऐसा ज्ञान सम्यग्दृष्टि पुरुषोंके होता है, मिथ्यादृष्टि यह भेद नहीं जानता।