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समयतार
अथाप्रतिबुद्धबोधनाय व्यवसाय
अण्णाणमोहिदमदी मज्झमिणं भणदि पुग्गलं दव्वं । बद्धमबद्ध च तहा जीवो बहुभावसंजुत्तो ॥२३॥ सब्बगहुणाणदिट्ठो जीवों उपयोगलक्खणो णिच्चं । कह सो पुग्गलदब्बी-भूदो जं भणसि मज्झमिणं ॥२४॥ जदि सों पुग्गलदबी-भूदो जीवत्तमागदं इदरं । तो सत्तो वुत्तु जे मझमिणं पुग्गलं दध्वं ॥२५॥
अज्ञानमुग्धयुद्धी, जीव बना विविधभावसंयोगी। इससे कहता तन सुत, नारी भवनावि मेरे हैं ॥२३॥ सर्वज्ञज्ञानमें यह, मलका चित् नित्य ज्ञानदर्शनमय । बह पुद्गल क्यों होगा, फिर क्यों कहता कि यह मेरा ॥२४॥ यदि जीक बने पुद्गल, पुद्गल बन जाय जीव जो कमाई ।
तो कहना बन सकता, पुद्गल मेरा न पर ऐसा ॥२५॥ अज्ञानमोहितमतिर्ममेदं भणति पुद्गलं द्रव्यं । बद्धमबद्धं च तथा जीवो बहुभावसंयुक्तः ॥२३॥ सर्वज्ञशानदृष्टो जीब उपयोगलक्षणो नित्यं । कथं स पुद्गलद्रध्यीभूतो यद्भणसि ममेदं ॥२४॥ यदि स पुद्गलद्रव्यीभूतो जीवत्वमागतमितरत् । तहि शक्तो वक्तुं यन्ममेदं पुद्गलं द्रव्यं ॥२५॥
नामसंज- अष्णाणमोहिदमदि, अम्ह, इम, पुग्गल, दव्य, बद्ध, अबद्ध, च, तहा, जीव, बहुभावसंजुत्त, सवण्हणाणदिट्ट, जीव, उपओगलक्खण णिच्च, कह, त, पुग्गलदवीभूद, ज, अम्ह, इम जदि, त, पुग्गलदब्बीभूद, ज, अम्ह, इम, जदि, त, पुग्गलदव्वीभूद, जीवत्त आगद, इदर, तो, सत्त, जे, अम्ह, इम, पुग्गल, दव्व । धातुसंज-भण कथने, बु व्यक्तायां वाचि, सक्क सामर्थ्ये । प्रातिपदिक-अज्ञानमोहितमति, अस्मद, कभी नहीं होऊँगा । ऐसे परिपूर्ण निर्णयके साथ सर्व परसे उपेक्षा करें और अपनेमें परमविश्राम करें ॥२०-२१-२२।।
अब अप्रतिबुद्धकं समझानेके लिये उद्यम करते हैं--[अज्ञानमोहितमतिः] प्रशानसे जिसकी मति मोहित है ऐसा [जीवः जीव [मरगति] कहता है कि [इदं] यह [बद्धव प्रबद्ध] शरीरादि बद्धद्रव्य, धनधान्यादि प्रबद्ध परद्रव्य [मम] मेरा है सो वह जीव [बहुभावसंयुक्तः] मोह रागद्वेषादि बहुत भावोंसे सहित है। परन्तु [जीवः] जीव पदार्थ तो [ सर्वज्ञज्ञानदृष्टः] सर्वज्ञके ज्ञान में देखा गया [नित्यं] नित्य [उपयोगलक्षरण: उपयोग लक्षण वाला है [सः] वह [पुद्गलद्रव्योभूतः] पुद्गलद्रव्यरूप [कथं] कैसे हो सकता है ? [यता