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पूर्व रंग
जह गाम को वि पुरिसो रायाणं जाणिऊण सदहदि । तो तं अणुचरदि पुणो यत्यत्वीय पयते ॥ १७॥ एवं हि जीवराया यादव्वो तह य सहदव्वो । रिव्वय पुणो सो चेव दु मोक्खकामेण ॥१॥ (युगलम् )
ज्यों कोई पुरुष धनका, इच्छुक नृपको सु जानकर माने । सेवा भि करे उसकी उसके अनुकुल यत्नोंसे ॥१७॥ क्षति पुगणे, गुळात देशको सही जातो । मानो व भजो उसको, स्वभावसद्भाव यत्नोंसे ॥१८॥
यथा नाम कोपि पुरुषो राजानं ज्ञात्वा श्रद्दधाति । ततस्तमनुचरति पुनरर्थार्थिक प्रयत्नेन ||१ एवं हि जीवराजो ज्ञातव्यस्तथैव श्रद्धातव्यः | अमुचरितव्यरच पुनः न चैव तु मोक्षकामेन || १८ ||
rer fह freeyosisoर्थी प्रयत्नेन प्रथममेव राजानं जानोते ततस्तमेव श्रद्धत्ते तत स्तमेवानुचरति । तथात्मना मोक्षार्थिना प्रथममेवात्मा ज्ञातव्यः ततः स एव श्रद्धातव्यः ततः स एवानुचरितव्यश्च साध्यसिद्धेान्यथोपपत्यनुपपत्तिभ्यां । तत्र यदात्मनोनुभूयमानानेकभावसंकरेपि परमविवेक कौशलेनाय महमनुभूतिरित्यात्मज्ञानेन संगच्छमानमेव तथेतिप्रत्ययलक्षणं
नामसंज्ञ-जह, णाम, क, वि, पुरिस, राय, तो त, पुणो, अत्थस्थि, पयत्त, एवं हि, जीवराय, तह, य, य, पुणो, त, चेव, दु, मोक्खकाम । धातुसंज -जाण अवबोधने, सद्-दह कारणे, अनुचर गतौ काम इच्छायां । प्रकृतिशब्द - यथा, नामन् किम् अपि पुरुष, राजन्, तत् तत् पुनर्, अर्थार्थिक प्रयत्न, एवं, मोक्षको चाहने वाला पहले तो आत्माको जाने, श्रनन्तर उसीका श्रद्धान करे उसके पश्चात् उसीका श्रनुचरण करे, क्योंकि निष्कर्म प्रवस्थारूप प्रभेद शुद्धस्वरूप साध्यकी इसी प्रकार उपपत्ति ( सिद्धि ) है अन्यथा श्रनुपपत्ति है । जिस समय आत्मा के अनुभवमें आये हुए अनेक पर्यायरूप भेदभावोंसे मिश्रितता होनेपर भी परम भेदज्ञानकी प्रवीणतासे जो यह अनुभूति है कि "यही मैं हूं" ऐसे श्रात्मज्ञानसे युक्त होता हुआ यह प्रात्मा जैसा जाना वैसा ही है, ऐसी प्रतीतिस्वरूप श्रद्धान प्रकट होता है उसी समय समस्त अन्य भावोंसे भेद होनेके कारण निःशंक ही ठहरने में समर्थ होनेसे उदीयमान हुआ आत्माका आचरण आत्माको साधता है । इस तरह तो साध्य श्रात्माकी सिद्धिको तथोपपत्ति प्रसिद्ध है । परन्तु जिस समय ऐसा अनुभूतिस्वरूप भगवान आत्मा बाल गोपाल तक सदाकाल स्वयं ही अनुभव में आता भो अनादिबंध के वश से परद्रव्यों सहित एकत्वका निश्चय कर प्रशानी के "यह मैं हूं" ऐसा अनुभूतिरूप आत्मज्ञान नहीं प्रकट होता, उसके प्रभाव से अज्ञात गधेके सींग के समान श्रद्धानका भो उदय नहीं होता । उस