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समापन
विषय
शरीराषिसे भिन्न बास्माको अनुभव करनेका फल भूजन किसको बारमा मानते है मात्मस्वरूपके जाननेके इलाकोंको पारीरसे भिन्न
मारमभावना करनेका उपदेश छात्माकी एकाग्र भावना का फल पित्तकी स्थिरताके लिए कोकसंसर्गका त्याग क्या मनुष्योंका संसर्ग छोड़कर जंगलमें निवास करना चाहिए ७३ बात्मवर्षी और अनात्मवी होनेका फल पास्तवमें भारला ही वात्माका गुरु है। बहिरात्मा तथा अन्तरात्मा मरणके सन्निकट थाने पर
क्या करता है ध्यवारमें अमादरवात से नानाजोगतो आजोबा
मन्य नहीं जो मात्माके विषयमें जामता है वही मुक्तिको प्राप्त करता है ५९ मेक-विज्ञानी अन्तरात्माको यह जगत योगको प्रारम और
निष्पन्न अस्पायोंमें कैसा प्रतीत होता है मात्माकी भिन्न भावनाके बिमा भरपेट उपवेश सुमने-सुनानेसे __मुक्ति नहीं होती भेष-शामकी भावनामें प्रवृत्त हुए मन्तरास्माका कर्तव्य
तोकी तह प्रतोंका विकल्प भी त्याज्य है वयोंके विकल्पको छोड़नेका क्रम अन्सर्जल्पसे युक्त उत्प्रेक्षा-जाल दुःखका मूल कारण है, उसके
माणसे परम पदकी प्राप्ति और नाश करने का क्रम प्रतविकल्पकी तरह हिंगका विकल्प भी मुक्ति का कारण
नहीं जातिका आग्रह भी मुक्तिका कारण नहीं है माझग बादि जाति-विशिष्ट मामय ही बीमित होकर
मुक्ति पा सकता है ऐसा जिनके बागमानुबन्धी छ है ये भी परमपवको प्राप्त नहीं हो सकते
८९७७ मोही जीवोंक दृष्टि-विकारका परिणाम और दान-व्यापारका
विपर्यास