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समापित
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भनके विक्षिप्त तथा विक्षिप्त होने का कारण पितके विक्षिप्त-मविक्षिप्त होमेका वास्तविक फल अपमानादि तवा रागद्वेषाविको दूर करणेका उपाय राग बार देष विषय तथा विपक्ष का प्रवर्धन भ्रमात्मक प्रेमके नष्ट होनेका फल तपसे गहिरास्मा क्या चाहता है और सन्तरात्मा क्या बहिरात्मा और पन्तरात्मा कर्म बंधन का कत्र्ता कौन अहिरामा बोर अन्तरारमाका विचारमेष अन्तरात्माकी देहादिमें अभेदरूपकी भांति क्यों होती है अन्तरास्मा उस प्रान्तिको कैसे पोहे बहिरात्मा मौर अन्तरात्माके त्याग ग्रहण का स्पष्ट विवेपन ४७ अन्तरास्माके अन्तरंग त्याग-प्रहम का प्रकार स्त्री-पुत्रादिक साप पनादि-व्यवहारमें किमको सुन प्रतीत
होता है और किनको नहीं मन्तरात्माकी भोजनादिके ग्रहपमें प्रवृति हो सकती है ५० बनासक्त मन्तरारमा आरमकाम को बुद्धिमें से धारण करे ५१ बियोंको रोककर बारमानुभव करने वाले को दुःख सुख से
होता है नामस्वरूप की मापना किस सहकरनी चाहिये ५३ बचन बार शरीरमें ब्रांत सथा मनात मनुष्यका पबहार ५४ बाह विषयकी अनुपकारता और बबानीकी आसक्ति। मिथ्यावफे दश बहिरात्माको कसी पशा होती है स्वशरीर मौर परशरीरको कोसे अवलोकन करना चाहिये। मानीणीप मालमत्वका स्वयं अनुभव कर महात्मामोंको
क्यों नहीं बताते, जिससे वे भी पात्मज्ञानी र ५८,५९ ५४-५५ महात्मामो मामगोप न होनेका कारण बान्तरात्माके धारीराषिके अलंकृत करने में सदासीमता ६१ ५७ संसार कब तक रहता है और मुक्ति की प्राप्ति कब होती है ६२ मन्तरात्माके शरीरके धनादिरूप होने पर बात्माको धनाषिरूप मानना
६३,६४,६५,६६ ५८-५९ बारात्माकी मुक्ति-योग्यता