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समाजितंत्र
विषय
संयोगकी ऐसी अवस्था में अन्तरात्मा क्या करता है बहिरात्मा और अन्तरात्माकी कौनसी दशा भ्रमरूप और कौन भ्रमरहित होती हूँ
देहात्मदृष्टिका सकलशास्त्रपरिशान और जाग्रत रहता भो मुक्ति लिए निष्फल है
सातात्माके सुप्तादि अवस्थाओं में भी स्वरूप संवेदन क्योंकर
बना रहता हूँ
चित्त कहाँ पर अनासक्त होता है मिन्नात्मस्वरूप ध्येयमें कीनताका फल
अभिन्नात्माकी उपासनाका फल
मिन्नाभिन्नस्वरूप आत्मभावनाका उपसंहार
आत्मतत्त्वके विषयमें चार्वाक और सांख्यमतकी मान्यताओंका
निरसन
मरणरूप विनाशके हो जानेपर उतरकालमें आत्माका अस्तित्व कैसे बन सकता हूँ
अनादि निधन आत्माको मुक्तिके लिए दुर्बर तपश्चरण द्वारा कष्ट उठाना व्यर्थ नहीं, नावश्यक है
शरीरमात्मा सर्वथा भिन्न होने पर आत्माकी गति स्थितिसे शरीर को गतिस्थिति कैसे होती है शरीर-यंत्रोंकी आत्मामें आरोपना अनारोपना करके जड़fast जीव किस फलको प्राप्त होते हैं।
ग्रन्थ का उपसंहार
अन्तिम मंगलकामना
श्लोक
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