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समाधितंत्र
जब यह आस्मा सुगुरुके उपदेशसे या तत्त्वनिर्णयरूप संस्कारसे आत्माके स्वरूपको विपरीत बनाने वाले दर्शनमोहनोयकमका उपशमादि कर सम्यक्त्व प्राप्त करता है, उस समय आत्मा मेंसे विपरीताभिनिवेशके सम्बन्धसे होने वाली अचेतनपरपदों में आत्मकल्पनारूप बुद्धि दूर हो जाती है। तभी माक्षापयोगी प्रयोजनभूत जावादि सप्ततत्त्वोका यथार्थ श्रद्धान व परिज्ञान होता है, और परद्रव्योंस उदासीन भावरूप चारित्र हो जाता है। इसलिये कर्मबन्धन छटनेका अमोघ उपाय आत्माको आत्मरूप हो, तथा आत्मासे भिन्न कर्मजनित शरीरादि पर पदार्थीको पररूप हो जाननी या अनुनय करना है। पदामा यथार्थ प्रदान, शान और आचरणसे आत्मा कौके बन्धनसे छूट जाता है, यहो मोक्षकी प्राप्तिका उपाय है।
झानावरणादिक अष्ट कर्मोसे रहित आत्माकी आत्यंतिक अन्तमें होने वाली-अवस्थाका नाम मोक्ष है। आत्माको यह अवस्था अत्यन्त शुद्ध और स्वाभाविक होती है-रागादिक औपाधिक भावोंसे रहित है । अथवा यों कहिये कि जीवकी यह अवस्था नित्य, निरंजन, निर्विकार, निराकुल एवं अबाधित सुखको लिये हुए शुद्ध चिद्रूपमय अवस्था है, जो कि सम्यक्त्वादि अनंत गुणोंका समुदाय है। इस अवस्थाको लिये हुए श्रीसिद्धपरमात्मा चरम शरीरसे किंचित् ऊन लोकके अग्रभागमें निवास करते हैं। ___ग्रन्थकर्ता श्रीपूज्यपाद स्वामोने अविनाशो अनन्तज्ञानवाले सिद्धपरमात्माको नमस्कार किया है। इससे मालूम होता है कि ग्रन्थकर्ताको शुद्धाल्माके प्राप्त करनेको उत्कट अभिलाषा थी। जो जिस गुणकी प्राप्तिका इच्छुक होता है वह उस गुणसे युक्त पुरुषको नमस्कार करता है । जैसे धनुर्विद्याके सीखनेका अभिलाषो धनुर्वेदीको नमस्कार करता है। वास्तवमें पूर्णता और कृतकृत्यताको दृष्टिसे परमदेवपना सिद्धोंमें ही है। इसीसे उक्त श्लोकमें अक्षय-अनन्त-ज्ञानादि-स्वरूप सिद्ध परमात्माको सर्वप्रथम नमस्कार किया गया है। ___ अथोक्तप्रकारसिद्धस्वरूपस्य तस्त्राप्त्युपायस्य चोपदेष्टारं सकलात्मानमिष्टदेवताविशेष स्तोतुमाहअयन्ति यस्यावरतोऽपि भारती विभूतयस्तीर्थकृतोप्यनीहितुः । शिवाय पाने सुगताय विष्णवे जिनाय तस्मै सकलात्मने नमः ॥२॥
टीका-पाय भगक्तो जपति सर्वोत्कर्षेण वर्तन्ते । काः ? भारती