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हि गोई परिवदिप बुराई ॥ जहि बोलिन गोमलियामउ । 'ढोइन्जद सिराज वाम ॥ नहि गोविउ गोविवाति हरु । for कंण सिह ॥ जहि वणिज्जह जगण लगद्दषु । एत् पोट्टि मायासंदणु ॥ पूर्ण एंतु एश्यु पछि । वासविज्य एत् यियि ॥ एल्युरिट्ठ सतरंगम् मद्दिउ । एत्यु उलूखलु कड्कइ भद्धि ।। एत्यु भग्गु जमलज्जण बालें । गिरि उद्धारि एत्थ मुखालें ।।
पता- तं गो गणु देव
[सयंभू एक रिमिरिए
खज्जन
।
से होस महाधर णारायण सियहे निसण्णउ ॥ ६ ॥
वासु एव' बसुएवधरिणिए । कलन करेणु विट्टु ं करिणिए । पीपलवासु महाघण-सम्मज ।
सिरकमल द्विय कुवलयदम्भउ ॥ कावि गोषि तहो" "पच्छ लग्गरे । मक्कु कण्ह पई मंथणी भग्गी ॥ जहा महारज दुक्कहि पंगणु ।
झुण्ड और मृग बोल
वहाँ गये, जहाँ दूध का संवर्धन करनेवाले गोपति थे; और जहाँ गायों के रहे थे । जहाँ सिन्दूर और रस्सियाँ ढोयी जा रही थीं, जहां गोविन्द की पीड़ा को दूर करनेवाली, और कंचुकी से अपना आधे स्तन के शिखर भाग को दिखानेवाली गोपियाँ थीं । जनों के द्वारा जहाँ जनार्दन का इस प्रकार वर्णन किया जाता है कि यहाँ उन्होंने मायावी रथ को उलटाया, यहाँ आती हुई पूतना की प्रतीक्षा की। यहाँ वायस विद्या को पीड़ित किया । यहाँ अव महित अरिष्ट वृषभ का मर्दन किया। यहाँ भद्र (कृष्ण) कवन खींचते रहे, यहाँ शिशु ने यमलार्जुनको भग्न किया। यहाँ कृष्ण ने अपनी बाहु रूपी डाल से गोवर्धन पर्वत उठाया।
छत्ता -- देवकी को गोठ प्रांगण अत्यन्त सुन्दर दिखाई दिया। ( उसे लगा कि ) नारायण की श्री में रहनेवाला अवश्य ही मूल्यवान सिद्ध होगा || २ ||
वसुदेव की गृहणी देवकी ने वासुदेव (कृष्ण) को इस प्रकार देखा मानो हथिनी ने हाथी के बच्चे को देखा हो । पीले वस्त्र वाले वह महामेघ की तरह श्याम हैं, और सिर पर कमलमाल स्थित है। कोई गोपी उनके पीछे पड़ गई--"हे कृष्ण तुमने मेरी मथानी तोड़ी है, तुम तब तक
१. अ, ब – लक्ष् सिन्दूरउ ढोइहि दामउ । २ अ वासुएउ। ३. अ - सिरि कमलदिल- कुवलयदाम । ४. अ – पच्चा ।