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________________ पंधमो सग्गो] अग्णहि दिवसि तुरंगम भाइयउ । भागगीउ गओ कति ग घाउ ।। अण्णाह वासरि पातु पगंषउ। वाम गुण उलूखलु बदउ ।। गर सारा सामारित हो जाना । 'पच्छाइ लग्गु अणहष्णु सावहि ॥ 'एक् गइ विलासु परिवरढइ । भवरकमेण उलूखलु काइ॥ फसाए परवल गंजणु । उपरि पविय गरि जमलम्जणु ॥ ता महसूयर्पण मजायें। एकेकउ एक्के करके हत्थे ।। भग कत्ति वेवि गयणासेवि। रुबई मस्यावियाई पयासेवि ॥ माहि काले धूलि पहाणेहि। जलहरषाहि मुसलपमाणेहिं ।। लाइउ गोष्ट आश्टुअगरण गिरि उरिउ कुखक गोषमा । घसा--वडिय-पुण्ग-फलोदएण वणुवह बसण-अवचिन्हें। बिवहई सत्त सरतियई परिरमिखाउ गोजल, कण्हें ।।। अहि जारि गमणागंदहो। देवद हलहरु गोउलगंवाहो॥ गगई पेवि हरिपदणलुखई। दूसरे दिन घोड़ा आया। गर्दन नष्ट होने के कारण वह भाग खड़ा हुआ, किसी प्रकार मरा भर नहीं। दूसरे दिन, दुवपीता बच्चा रस्सी से उखान से बांध दिया गया। जिस समय यशोदा तालाब के जल के लिए जाती है, उसी समय जनार्दन पीछे लग गये। एक पैर से वह अपना गतिविसास बढ़ाते हैं, और दूमरे पर से ऊखल को खींचते हैं। कंस के आदेश से शत्रुसैन्य का नाश करनेवाले यमलाजुन केवल उसके ऊपर गिर पड़े। तब बीच में स्थित मधुसूदन ने एक-एक को एक-एक हाथ से तइसढ़ करके नष्ट कर दिया। वे दोनों अपने मायाधी रूप दिखाकर भाग गये। एक समय ---जिनमें धूल और पत्थर है, और जो मूसल के बराबर हैं ऐमी जलपरपारामों ने गोठ को घेर लिया। जनार्दन क्रुद्ध हो उठे, उन्होंने दुधर गोवर्धन पर्वत उठा लिया । पत्ता—जिसके पुण्य फल का उदय बढ़ रहा है , और दानवों के शरीरों को चूर-चूर करने में अवितृष्ण (असंतुष्ट है) ऐसे कृष्ण ने सात दिन-रात गोकुल की रक्षा की ॥८॥ दूसरे दिन, देवकी और बलराम दोनों, नेत्रों को आनन्द देनेवाचे गोकुल के नन्द के पास १.--वाइस । २. प्र—पच्छले । ३. ५-एक्कं ।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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