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आइय देवय सासें । सुति बरवामसें ॥
पत्ता- जाणिद एंतु जगद्दगेण खग-मायारूष-पबंधु
[सयं एवक रिभिपरिए
करिवि अपंग घल्लियउ पिप्पोडण तोडिय- चंचू १६ ॥
"कहि विणेहि परिवाए । ग्राहय वेबध संवण-वेसें ।। घुरंत खुपतेहि चक्के ह | afan-संवाणिय चचक्के रनु सपमेय अवाणु भावइ । चरणहो बलिज महीहर गावइ ॥ सोबि गोविंदे विमकमसारें । भग्गु कति णिधिपहारें ॥ अनहि वासरि बलवंत । मायासह आज अंत ॥ चलगुवा लिय- भूहर भयंकर । बेक्कार - बहिरिय भुवणो ॥ युद्ध-सिंगा-लगा-धम साविय बसेस गोट्ट गणु ॥ पेक्षि रिट्ठ सुछु आबदुर । वलेषि कंद्र किज पाराउउ
।
पत्ता - गोवाभंगे पवरिसिए संवाणिउ जाउ विसेसें ।
को बलिए णीसरिवि गज जीविज कहवि किलेसें ॥७॥
में कंस के द्वारा प्रेषित एक देवी आयी, कौए के रूप में सूं सूं करती हुई ।
पत्ता - जनार्दन ने खग के माया रूप प्रपंच को जान लिया। जिसकी चोंच निष्पीडन से टूट चुकी है, ऐसे उस मायाबी पक्षी को अजंगम करके छोड़ दिया || ६
कुछ ही दिनों में राजा के आदेश से एक देवी रथ के रूप में आयी, विस्तार में चन्द्रमा और सूर्य को पराजित करनेवाले जगमगाते छक्कों (चक्रों) से घर-घर करती हुई । रथ अपने आप दोड़ता है, जैसे महीघर अपने स्थान से चलित होकर दौड़ रहा हो। विक्रम में श्रेष्ठ गोविन्द ने उसे भी अपने पैरों के प्रहार से तड़तड़ तोड़ दिया। दूसरे दिन अत्यन्त बलवान मायावी बैल गरजता हुआ आया। जो पैरों से उछाले गए पहाड़ से भयंकर है, जिसके विशाल सींग का अगला भाग आकाश के आँगन से जा लगा है, जिसने समस्त गोठ आंगन को भयभीत किया है, ऐसे उस अत्यन्त कुपित बैल को देखकर उसकी प्रीचा को मोड़कर उसे इस छोर से उस छोर तक मिला दिया ।
बत्ता -- ग्रीवा मंग के प्रदर्शन से बैल विशेष रूप से नियंत्रित हो गया। टे मुड़ने पर उसके प्राण बड़ी कठिनाई से निकलकर जहां कहीं भी चले गये ||७
१. ज – कजिं । २. अ— आवाहषु । २. अ— सुवि ।