________________
पंचमो सग्यो]
पूपण परफरेहि परिपेल्ला। इसाजणइण गाहग मेल्लाइ ।। पूयणपिज्जमाण आकंवा । । हरि श्रुतसगण परियंवद ॥ सोणि य-वीसद्ध धाणिए मत्तउ।
तो वि 'पोहरु वि परिचसा ।। पत्ता-खोर बिवहिर वि पृयपाहे कहिल फेसवेण रखें। पं णमुहण वसुंधरिहे आकरिसित सलिल समुन्वें ॥५॥
"णिसुणि सक्दु रउछु सकवरु । गट्ठ जसोय सप्तम समंदरु ॥ बाल ण रमखसु चित्तु चमक्का । पूयग विरस रसति ण याकइ । पासुएउ वसुएबहो गवण। हरि-उबिव-गोविंद जपणु ॥ पउमणाइ माहब महसूयण। कंसहो तपिय विज्ज हवं पूयण ।। गत्य ग एमि, जामि प मारहि । भगवण-वेयग-पसर गिवारहि ।। दुग्ध वुमख आमेल्लिय वालें। तहि गोढगणे योवे कालें। णवणवणीय-हत्य र अंगणे ;
अच्छह जाम ताम गयणंगणे ।। हैं। पूसना अपने प्रवर हाथों से उसे ठेलती है, जनार्दन उसे काटता है, वह अपनी पका को नहीं छोड़ता। पी (पिई जाती हुई पूतना चिल्लाती है, कृष्ण धूर्तता से घूमते हैं, यद्यपि वह रक्त की पान से मत्स हैं, तो भी उनके द्वारा पयोधर नहीं छोड़ा जाता।।
घता---कृष्ण ने पूतना का दूध भी और रक्त भी इस प्रकार खींच लिया, मानो नदी के मुख से समुद्र ने धरती का जल खींच लिया हो ॥शा ___ ऊंचा और भयंकर शब्द सुनकर यशोदा भयपूर्वक अपने घर से भागी और बोली कि यह बालक नहीं राक्षस है। उसका चित्त चौंकता है। पूतना दुरी तरह चिल्लाती हुई नहीं रुकती-. "हे वसुदेव के पुत्र वासुदेव, हरि उपेन्द्र गोविन्द जनार्दन पद्मनाथ माधव मधुसूदन, मैं पूतना कस की विद्या हूँ। गई हुई नहीं आऊँगी, मैं जाती हूँ, मुझे मत मारो। स्तनों के घावों की बेदना को दूर करो।" बालक ने बड़ी कठिनाई से उसे छोड़ा । थोड़े समय बाद उसी गोठ-आंगन में, जब शिशु कृष्ण, नवनीत के समान हाथवाले हरि बैठे हुए थे, कि तभी आकाश के आंगन में
१. म.--श्रीसद्गु-घाणिये। २. अ-पनुहरू। ३.-बसंधुरे । ४. म—णिसुणिय कि सद्दु रउदुषकंदिरु।