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[सयंभूएवकए रिट्ठणेमिचरिए विज्जज अपर कवणु बंधेप्पिणु ॥ उसगसेणु कि पलयहो पिज्जाउ। कि समसुत्ती पुरे पाडिज्म ।। बुच्चा भइवरेण एत्यंतरे। एउ 'करिज्जह अण्णभवसरे॥ अम्हाइं ताज कंस सुपसण्णउ । मग्गि मगि कि पितावण्णउ ।। पभगइ 'महुरापुरि-परिवाल। बढणंदहो घरि जो बालन ॥ तं विणिवाइयत माह आएसे। पूयण पाइथा पाई-बेसें ।। सविक्षु पयहरु ढोइउ बालहो ।
गं अप्पागु छुन मुहिकालहो ।। पत्ता-सो पगु दुधारधवलु हरि-वय-करतरे माइयउ। पहिलारउ असरायणे णं पंचजण्णु मुहि लाइप ॥४॥
पूषण 'पटुवंति प्राया। थणुथणंतु धणंधय कढह ॥ पूयण पाहुति भेसावह। भदिन भीमभिउडि वरिभाषद॥ पूयण पाल वंति एवियंभइ। माहवहिर-पाण पारंभइ ।। पूषण पाठवंति किर मारद। णिर-मुट्टि विण्ड वार॥
- - - - - - "वासुदेव और बलदेव को छोड़कर, और कौन बाँधकर दिया जाए? क्या उग्रसेन को प्रलय पहचाया जाए ? क्या नगर में वज गिराया जाए?" इसी बीच मुनिवर ने कहा--"यह काम दूसरे जन्म में करना ।" "हे कंस, हम वे ही देवियां प्रसन्न हुई हैं, मांगो मांगो ! तुम चिन्ता से व्याकुल क्यों हो? 'सब मथुरापुरी का परिपालन करनेवाला कहता है-"नन्द के घर में जो मालक बढ़ रहा है, मेरे आदेश से तुम उसे मार डालो।" पूतना धाय के वेश में दौड़ी । बालक को उसने विर्षला स्तन दिया, मानो उमने स्वयं को काल के मुख में डाल लिया।
__ घत्ता–दूध की धार से धवल वह स्तन श्रीकृष्ण के दोनों हाथों में समाता हुआ ऐसा मासूम हुआ मानो असुरो के युद्ध में पहले पहल पांचजन्म मुख में रखा हो ।।४।।
पूतना पनहाती हुई घूमती है, शिशु थन-यन करते हुए स्तन को खींचता है । पनहाती हुई पूतना उराती है, भद्र कृष्ण भयंकर भौहें दिखाता है । पनहाती हुई पूतना बढ़ती है, माधव रक्त का पान प्रारम्भ करते हैं । पूतना पत्नहाती हुई मारती है, विष्णु (कृष्ण) अपनी दृढ़ मुट्ठी मारते
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१. अ—करिज्जुह । २.
-महरा पयवालउ । ३. म-घरे। ४. ज--पण्डत्ति । ५. थणडून