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पंचको सल्लो
घर गोठे पास। संकि महरापुर-परमेसर।। मापस देषमाज एस्वंतरि। सिद्धर जाउ पुश्वजम्मतरि॥ जापई कंस होंतु पवाइयउ ।
सब घोरवीच तर ताबड। पवाय बरंतु सहकारणु। भासहो मासहो एस्कसि पारण॥ जामिबि अगसेफ महराराएं। निस पियारिय पुरै अगुराएं। म त्रिणिलणे पाउ भारत । सो वि पाइछु अगंग-विधारत । "पस-गर-अग्गि-बार । से मलाइ तहो जाउ तिवारउ । मासि उत्पए जाय पइसह ।
"मुच्छते अंधार ते दोसइ॥ पत्ता- कवि कोहप्पायउ, परियवेज महारिसि मारिउ । धाएं को प्रवराह किउ, में पुरि पइसारु णिवारियउ ॥३॥
सिंह देवयाउ सहि अक्सर। बेइ पाएन, भगति मगंतरि ।
बासुएउ बलएज मुएप्पिम्। गोठ में जो दामोदर का जन्म हुआ, उससे मथुरा का राजा शंकित हो उठा। इसी बीच देवियां आयीं जो उसे (कंस को) पूर्वजन्म में सिद्ध हुई थीं, कि अब कंस ने संन्यास ग्रहण करते हुए अत्यन्त पोर वीर तप किया था। शुभ (पुण्य) के कारण रूप चांद्रायण तप करते हुए वह माह-माह में एक बार तप ग्रहण करता था । यह जानकर मथुरा के राजा उग्रसेन ने अनुराग के कारण, लोगों को मुनि के लिए भिक्षा देने से मना कर दिया और (उनसे) अनुरोध किया कि हे आदरणीय आप मेरे घर ही रहें । कामदेव को नष्ट करनेवाले वह मुनि नगर में प्रविष्ट हुए। लेकिन पत्र, गजराज और अग्निसंकट के कारण उन मुनि को तीन बार आहार का लाभ नहीं हो सका । चौथे माह में जब वह प्रवेश करते हैं, तो वे मूर्मिछत हो जाते हैं और उन्हें अन्धकार दिखाई देता है।
पत्ता—किसी ने यह कहकर राजा को क्रोध उत्पन्न कर दिया कि राजा ने महामुनि को मार डाला। इन्होंने कौन-सा अपराध किया कि जिससे उसने इनका नगर में प्रवेश रोक दिया ।।३।।
उस अवसर पर सिद्ध हुई देविया, 'आदेश दो' कहती हुई पल भर में आ गयीं। बोली-- १. - गोछि। २. ज---एत्यंतरे। ३. ज-जाणेवि उग्गसेण महुराएं। ४. ज–पयंछु। ५.पा- भत्त गइंद। ६. अ-मुग्छत मंघमाय तें दीसह ।