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सयंमूएक्कए रिटुगेमिचरिए यता- मेहरि अम्माहीरएण परियंदइ हल्ला-गाह ।
गोजलेपहं भवहाणेण हउँ हुइथ चित्ति सणाह॥१॥
को केहउ परचित्तई चोरई। हरि अलियउ मणिरारिउ घोर ।। णं खयकाले महण्णव गज्जा । गं सुरतारिय हि वजा ॥ णं णव-पाउसेग षणु गजा। णं केसरि-किसोर ओसंबई ।। घोरण-सवें मेइणि कंपई। णउ सामग्णु कोषि जणु अपह॥ भीय जसोय विजमणे कुप्पह। उठि जप किर केत्तिउ सप्पइ ।। 'कहवि विजय शाह हरिवंसहो। ताम कहिण्जा केविसहो । व पंदगोर्टिभो बालउ। विपकमु कोवि तासु मसराला ।। घोरण-सहें अंदर फुट्टइ।
पिहि वि अमृत्ति कर छुट्टा ॥ घत्ता दुपा पमाणहो रिसि वयण गोटुगणे वन विठ्ठ।
मज्ज सुमहरणराहिवहोणं हियवा सल्लु पश् ॥२॥ पत्ता-'अरे ओ सो जा' इस गीत के साथ मां स्तुति करती है—हे हलधर स्वामी, तुम्हारे अवतीर्ण होने से मैं मन-ही-मन आज सनाथ हूँ।१।।
कौन से परषिप्त हो चुराता है ? बालक कृष्ण झूठमूठ जोर-जोर से घुरघुर करता है, मानो क्षयकाल में समुद्र गरजता है, मानो देवताओं द्वारा बनाई गई दुदुभि बजती है। माचो नव पावस से मेघ गरजता है, मानो सिंह का नवजात शिशु गरजता है । उस घुरघुर शब्द से घरती काप उठती है। जनसमूह कहता है- यह सामान्य आदमी नहीं पुरघुर कर रहा है। भयभीत यशोदा बालक के जागने पर कृपित होती है-"ओ सुभट, उठो! कितना सोते झे!" तघ हरिवंश के स्वामी किसी प्रकार उठे। इतने में किसी ने कंस से कहा-"नन्द के गोठ में जो बालक पाला जा रहा है, उसका कोई अत्यन्त पराक्रम है, उसके घुरघुर शब्द से आकाश विदीर्ष हो जाता है, और ऐसी धरती कठिनाई से बचती है कि जिसका उपभोग न किया गया हो।"
घसा--मुनि का वचन प्रमाणित हो गया। गोठ के आँगन में विष्णू बढ़ते हैं, आज मानो सुन्दर मथुरा के राजा के हृदय में शल्य प्रवेश कर गया ।"
१.—णरारिख। २. -कवि उद्। ३. प्र-संकहो। ४. म-पंद गोळे । ५.समहर।