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पंचमो सग्गो
गंबह पंवहो तणउ घर अहि हरि उप्पण्याउ वालु । पालइ पालणए जि लिंज गोट ढंगणु-गो-परिवालु ॥छ॥
'कण्णहो कि शवलए । णिइ ण एइ रफंगणकखए॥ अज्जवि पूयण काई चिरावइ । अज्जयि माया-सयडु ण आवद ॥ अज्जवि रिटु-ककुष लिम्जद । अवि गोक्सणु ण परिजह ।। अववि प्रज्जुण-जुयलु ण भज्ज । अज्जवि कंसतुरंगु ग गजा अज्जवि जण जाहि मंपिज्जा। अज्जवि कालिउ जाहि परियामा। अन्जषि कुवलयवोछु ण हम्मद । अज्जवि महुराणयरि प गम्म॥ मर्जाव सधु सृणिज्ाइ तूरहो । अजवि तइय चलण चाणूरहो।। अज्जवि गंवा पुरि जरसंघहो ।। मआयए कंलए बालु ण सोयह ।
जाणा जपणि अकारणे रोबर।। नन्द का घर आनन्द में है, जहाँ हरि बालक उत्पन्न हुआ है, गोठ प्रांगण और गायों का परिपालन करनेवाले जो पालने में स्थिति होकर भी (जगत् का) का पालन करते हैं । रात का मार्ग दिखाई देने पर, मुद्ध के क्षेत्र की आकांक्षा से वृष्ण को नींद नहीं आती। (बह सोचते हे) आज भी पूतना देर क्यों करती है ? आज भी माया-शकट नहीं आता? आज भी अरिष्ट पायस नहीं लौटता? आज भी गोवर्धन पर्वत नहीं उठाया जाता। आज भी दोनों अर्जुन वृक्ष नष्ट नहीं किए जाते ? केसी अश्व नहीं गरजता? आज भी यमुना नहीं मयी जाती, आज मी कालिया नाग को नहीं नाथा जाता? आज भी कुवलय गज की पीठ को आहत नहीं किया आता? आज भी मथुरा नगरी को नहीं जाया जाता। आज भी नगाड़े का शम्द नहीं सुना जाता । चाणूर के पैर आज भी वैसे ही हैं, आज भी जरासंघ की नगरी वैसी ही प्रसन्न है ?" इसी आकांक्षा (चिन्ता) के कारण बालक नहीं सोला । माँ समझती है कि वह अकारण रोता है। १. क. कण्हहो णीसा मग्गि अक्सए । णिहा गइए रणंगण कखए।'