________________
पंचमी सम्भो
एकति जइ ण हि प्रालिगणु ।। काषि गोवि सयवार धोसा। बहो तषिय बाग तउ होसह ।। बह एक्कु वि पड देहि परमुह । एक्कवार जोयहि सबउंमा॥ काधि गोवि 'रसरंग-पलको। हरितणु कतिहे लिहक्किवि की । एम पियंति कीलतहो रासहो।
घरिद्धि गं मिलिय सुकालाहो ॥ धत्ता-पत्त-समागमे वेवइहे थण पहउ कहि मिण माह। लस अहिसित पयोहरेहि विहि मेहहि महिला पाइ ॥१०॥
तो 'प्रवहत्यु करिबि संवे। खोरहोष सित्तु पलाए। पासह-वसह भणेवि पगासिष। बिह भउ होइ ग कंसहो पालिय। अंधेवि पुति दिवि गोगा। गय नियभवण पोवो वैवइ॥ मालराहिउ सहि हाले घुमहा। फेलह वा भगंतु पस्किस ॥ पटु सोम कहिमि हरि लेपिण। पाणिग्रहण-पघोस करेपिणु ।।
तहिवि बुवालिए विषु ण पक्ता । यही ठहरो कि जब तक तुम मेरे आंगन में नहीं पहुंचते और मुझे आलिंगन नहीं देते।" कोई गोपी सौ बार घोषित करती है-"तुम्हें नंद की पापथ है यदि विमुख होकर तुम एक भी कदम रखते हो, एक बार मुंह सामने करके देखो।" रस क्रीड़ा से प्रदीप्त कोई मोपी कृष्णा के शरीर की कांति में छिपकर बैठ गई। क्रीड़ा करते हुए बालक कृष्ण को देवकी इस प्रकार देखती है जैसे सुकाल को धन-ऋद्धि मिल गई हो।
पत्ता-पुत्र के संगम के कारण देवकी का दूध करता स्तन कहीं भी नहीं समाता। (देवकी के) पयोधरों से श्रीकृष्ण [विषि] उसी प्रकार अभिषिक्त हुए जिस प्रकार महीधर मेघों से अभिषिक्त होता है।
तब शीघ्र ही उसे [देवकी को हटाकर बलदेव ने दूध के घड़े से उसका अभिषेक किया, और उन्हें 'इन्द्रश्रेष्ठ' कहकर प्रकाशित किया कि जिससे उन्हें फंस से भय न हो । गोपति (कृष्ण की अर्चना पूजा और वंदना कर, देवकी वापस अपने घर पर गयीं । उस अवसर पर मयरा का राजा गरजा मोर 'बालक को देखो' यह कहता हुआ वहां पहुंचा। यशोदा श्रीकण को लेकर और विराह की घोषणा कर कहीं(दूर) चली गयी । वहाँ भी बालक अवम के बिना प्रति १. अ, ब, अ, रससंग । २. अ-साहित्यु ।