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चजत्यो सम्गो]
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वसुएषहो पइयहे बेबाहे। जो गंदणु होसह बलमइहे ॥ सहो पास तुम्हहं विहिं मरगु। मा बम्पहो कोणि जाहि सरण ॥ तो मङ्गुर पराहिल डोल्लिपर। गं हियवइ सलें सल्लियज ॥ थिउ णाई घराघरु वड्वतः । अप्पमाणी होई परिसिषयषु॥ अपनंत महंत उपपण्णु भउ ।
गिविर्स वसुएवो पासु गउ ॥ अत्ता-अतुम्ह गुरुसणु महु सीसत्तणु परमत्यु समरिषयउ। तो एत्तिज किज्जइबरुवर विजय ससबार प्रभस्पिपउ १८॥
जं कंसु 'सुपरिष्टुिउ पमयसिक। 'रइयोजलि पोतुग्गिष्ण-गिरु ।। तो वेवाइवाएं दिल्छु पर।
मामि पि को मा अवरु ।। महराहिउ सरहसु विष्णवाइ। जो जो वेवइहे गरम हवइ ॥ सो सो विहणेश्वर सिलसिहरे॥ तुम्हेहि णिवसेना महु जि घरे । गड एम भणेप्पिषु लढवय। वसुएउ वि गउ गियवासहरू ।
णाई विमणु महाफणि मगिरहिन । वसुदेव की दुष्ट बुद्धिवाली पत्नी देवकी से जो पुत्र होगा, उसके हाथ में तुम दोनों की मौत है। मेरे पिता के लिए कोई शरण नहीं है ।" यह सुनकर मथुरा का राजा इस तरह कांप उठा, जैसे किसी ने हृदय में शूल चुभा दिया हो। वह जले हुए पहाड़ की तरह खड़ा रह गया, क्योंकि ऋषि के वचन कभी झूठे नहीं होते । उसे बहुत भारी दुःख उत्पन्न हो गया । वह एक पल में वसुदेव के पास गया और बोला--
घसा-यदि तुम्हारा गुरुत्व और मेरा शिष्यरक, परमार्थ भाव से समर्थित है, तो इतना कीजिए कि एक श्रेष्ठ वर दीजिए जो सात बार अभ्यथित हो ।।८।। ___ जब कंस हाथ जोड़कर और प्रगतसिर स्तुति में वाणी निकालता हुआ खता रहा, तो देवकी के पति वसूदेव ने वर दिया और कहा--"तुम्हें छोड़कर मेरा दूसरा कौन है ?" तब मथुरा का राजा [कंस] हर्षपूर्वक निवेदन करता है, "देवकी के जो-जो गर्म होगा वह मेरे द्वारा चट्टान पर मार दिया जाएगा। तुम लोगों को मेरे घर में ही निवास करना होगा।" ऐसा कहकर
और वर प्राप्त कर, वह चला गया। वसुदेव अपने निवासगृह गये, एकदम विमन हो जैसे मणि १.अ, म, परिटिज । २. –रइयांजलि पोत्तग्गिण्णगुरु । ३. अ— वसेम्बज ।
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