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विश्य निरवसेसु कहिउ ॥ देबत हुआ गोभय । शेवंती रसायलि मुच्छ गय ॥
[सयंभूवक रिमिचरिए
पत्ता-पडि प्राइम चेषण भणद्द सर्वेयण निश्चल हरिण इत्यभिए । सिंह कुलउ लिए काई जियंतिए पइहरे पुत्तविहूणए ॥ १ ॥ उधणणंदण जीवणइतियहं ।
जसु सत्तसई कुल-उसिहं ॥ सो किष्ण देव सवार बरु । हे महड जयरु । एक्कु वि लहू अण्णचि सुपरहिय । वरि लक्ष्य दिवस जिजवर - कहिय ॥ हो गय विग्निवि उज्जाणवणु । अमृतमहारसिहं सबणु ॥ पछि अवरु वसुए कंसहो दिष्ण वह ॥ जो गभुष्पज्जइ मह- उयरे ।
सो अव्फाल सिलसिहरे ॥ परमेस एज्झसु अवहरइ ष पुत्तहो एक्कुत्रि णउ मर ॥ छह घरम वह कहियागमणे पालेवा देवें जगमेण ॥
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पत्ता-सत्तम तुहार रणे जयगारज महराहिव मगहाश्विहं । महि-जिहि-यव पट्टणिबंधहं होसह परिषद पत्यवहं ॥१०॥
से रहित महानाग हों। उन्होंने अपना वृतान्त (घर) बताया। देवकी का शरीर भयग्रस्त हो उठा । वह रोती हुई धरती पर गिर पड़ी और मूच्छित हो गयी।
घसा---जब उसकी चेतना लौटी, तो यह वेदनापूर्वक बोली. "हिरनी की तरह निश्चल, कुलपुत्री का बिना पुत्र के पति के घर में जीवित रहने से क्या ? ॥६॥
धन, पुत्र और यौवनवाली, जिसके पास ( वसुदेव के पास ) सात सौ कुलपुत्रियाँ स्त्रियों के रूप में हैं वह क्यों न सौ बार वर दे ? हतभाग्य मेरी कूल में आग लगे। एक तो मैं सबसे छोटी हूँ और दूसरे पुत्ररहित हूँ। अच्छा हो कि जिनवर के द्वारा उपदिष्ट जिनदीक्षा ग्रहण कर लो जाए। वे दोनों उद्यानवन में गये, जहाँ अतिमुक्तक नामक श्रमण थे। वन्दना कर उन्होंने मुनिप्रवर से पूछा - "वसुदेव ने कंस को वर दिया है कि मेरे यहाँ गर्म से जो उत्पन्न होगा, उसे वह चट्टान पर पछाड़ेगा।" परमेश्वर उसका भय दूर करते हैं कि तुम्हारा एक भी पुत्र नहीं मरेगा । आगम में कहा गया है कि छह पुत्र चरम शरीरी हैं जो नैगमदेव के द्वारा पाले जाएंगे।
ता तुम्हारा सातवाँ पुत्र मथुरा और मगध के राजाओं का क्षयकारक होगा, आधी धरती, निधियों और रत्नों वाले पट्टधर राजाओं का राजा होगा ।।१०।। १. - - देव तणभय । २. अ- हरिण इत्युणए । ३. ज-- घणणंदणजीवद्द सियहं ।