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________________ [सयंमूएवकए रिढणेमिचरिए संलेण विषयषु परिचियत ।। परमेसर 'विज्जह महर महु । 'जहिं घुज्झमि पिय जणणेण सहूं । जउ गद्दहे घल्लिज जेण चिर। तंबंधमि जइचि ण लेमि सिरु ।। ता राएं हत्थुमछल्लिया। पिज़ बंधिधि णियलहिं घल्लियउ॥ पत्ता-जा बाप भुसी सिय-उलवती सा कि पुत्तही परिणवइ । सिय चंचल होइ विचित्ती जुत्ताजुत्त ण परिकला ॥४॥ महराउरि परिपालतु विउ । "णिवणय विहेज पडिबक्यु किउ ।। जरसंघहो जो ण सेव करह। उक्ख पाएवि तं घरइ॥ परिचितवइ बारहमंडलई । चउरासम चाउवष्णहलई ।। घविज्जउ सत्तिउ तिणि सहि। अट्ठारह तिस्थहं कवणु कहि॥ ससंगु रज्ज पाल अचलु। मेहलावइ छहविहु भिच्याबलु ।। छागुण सयल वि संभरह । सस वि दुश्वसण्इं परिहाइ ॥ जाणा कंटय-सोहणकारणु। णियरक्षण णियकुमारधरणू॥ मण्डल ले लो। तब उसने भी उस वचन' को स्वीकार कर लिया। [वह बोला] "हे परमेश्वर ! मुझे मथुरा दीजिए, जहाँ अपने पिता के माथ लड़ सई । उसने बहुत पहले मुझे नदी में फेंका था, मैं यदि उसका गिर नही लूंगा तो बोधूंगा।" तब राजा ने हाथ उठा दिया। पिता को बांधकर कंस ने बेड़ियों में डाल दिया। घसा–जो लक्ष्मीरूपी पुषी पिता के द्वारा भोगी गई, क्या वह पुष से परिणय करती है ? लक्ष्मी चंचल और बिचित्र होती है, वह उचित-अनुचित का विचार नहीं करती ||४|| ___मथुरा नगरी का परिपालन करते हुए, उसने प्रतिपक्ष को नप-नम से विभक्त कर दिया। जो जरासंघ की सेवा नहीं करना, आक्रमण कर उसे बन्दी बना लेता है। वह बारह मण्डल का विचार करता है, चार आश्रमों और चार वर्णों के फलों का विचार करता है। उसके पास चार विद्याएँ और तीन शक्तियाँ हैं । अट्ठारह तीर्थों का क्या कहना, वह अचल, सप्तांग राज्य का पालन करता है। छह प्रकार भुल्य बल को इकट्ठा करता है। समस्त छह मुणों की याद रखता है । मात दुर्व्यसनों का परित्याग करता है । कंटक-शोधन के कारण को १. अ-दिज्जउ । २. अथे। ३. अ—महराउरी। ४. अ-णियणयवसविहि ।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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