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त्यो सग्गो]
जरसं तो आलत्तु पिउ । वसुवह अग्भूत्या किउ ॥ जीजस घमसप्पियउ । तो 'रोहिणी णा पर्याय ॥ महं जिस ण भडारा सीह रहु । जिउ कसे जयहो वहु बहु ॥
परिपु
तु त कहो ।
संविहि हवं बजिरिङ तहो ॥ मंजोर नामें माय मनु । 'सुयकारिणि कोषिय आय लहु ॥ करकमल - कथंजलि विष्णव । अहो सुषु तिखंड सुहा हिवइ ।
एड्डू ण सच्च सुउ महंतणउ । उ जाम खाउ कहो तणउ ॥
- कंसय-मंजूस मुद्द- विहसिए केण वि जले पइसारियउ । कालिद पवा हे सुठु अगाहे आणेवि महु संचारियश्च ॥३॥
'कंसियमंजू जेण भवणु । किड कंसु तेण णामग्गहणु ॥ कलियाएउ ण महं णिरिडियन। गुरुसेविषि सत्यई सिविखयज ॥ परिओस 'पय पत्थिषहो । जीवंजस जियसुय क्षिण तहो ॥ मंडलु एक्कु नहि इच्छित ।
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समान था । तब जरासंघ ने प्रिय बात की और वसुदेव के लिए उठकर खड़ा हो गया। समर्पित जीवंजसा दूंगा । तब रोहिणी के स्वामी ने कहा – “आदरणीय, मैंने सिंहरथ को नहीं जीता। कंस ने जीता है, उसे बधू दीजिए।" जरासंघ ने पूछा - "तुम किसके पुत्र हरे ?" कंस ने कहा--- "मैं कौशाम्बी का हूँ, मंजोदरी नाम की मेरी माँ हैं । पुत्र के कारण बुलाई गई वह (मंजोदरी ) शीघ्र आयो । करकमलों की अंजलि बनाकर, वह शीघ्र बोली - "हे तीन खण्ड धरती के स्वामी ! सुनिए, यह सचमुच मेरा पुत्र नहीं है। नहीं जानती हूँ कि कहाँ से आया है।
घसा - मुद्रा से अलंकृत कांसे की मंजूषा में किसी ने इसे जल में प्रवेश कराया । अत्यन्त अगाध कालिंदी के प्रवाह में से लाकर मैंने इसे जीवित रखा है || ३ ||
चूंकि कांसे की मंजूषा में जन्म हुआ, इसलिए इसका नाम कंस रखा गया। यह कलहकारी था, इसलिए मैंने नहीं रखा। गुरु की सेवा करके उसने शस्त्रों को सीखा।" [यह सुनकर ] राजा को संतोष हो गया और अपनी कन्या जीवंजसा दे दी, [और कहा ] जहाँ चाहते हो, एक १. म - रोहिगिगाह । २. अ-ते । ३. अरंजोयरि । ४. अ - सुयकारिणि । ५. अकंसिय-मंजूस | ६. अपवढिओ ।