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तइयो सम्गो]
पत्ता–सारिपुर-परमेसर पाहिप-रहबरु पश्चारिउ पसुए। पहरू पहरु णवारज तुई पहिलारउ मछहि किं साथ लेवे ॥१३॥
ताब सुहद्द गह-पाहाणे। मुगा वाण पइसाहदाणे॥ 'किट दुहंड रहो जि कुमार। गं फणि पाइवइ-चक्षु पहार॥ सिय एम सरेहि अणेहि। वायव-वारुणरष-अगोयहि ॥ तस्पर-गिरिवर-सिल पाहहैं। सह-सहास-जुअ-लक्सपमाहि॥ पणु बम्हत्य विसज्जिा राएं। पासिउतमि-सामस-णाराएं । अंपट्टबाय अण्ड तिह पहरइ जिह माइण भिज्जह ॥ मंडेवि वधार-समरंगणु। परितोसावित्री अमरंगणु ॥ णियणाम किउ मनु महासरू।
पणवह पई बसुएउ सहोयम् । पत्ता---अंधषिठिहे पंधणु णयगाणंदणु बहह-मको लहपारउ ।
कहति कहषि बिन्छोइउ बाधै ढोइस हउं सो भाइ तुम्हारउ ॥१४॥ पसा जिसने अपना रथ हावा है, ऐसे शौर्यपुर के स्वामी वसुदेव ने ललकारते हुए कहा—'तुम अपना पहला नया आक्रमण करो, तुम अहंकार पूर्वका क्यों स्थित हो?" ॥१३॥ ___सब सुभद्रा के प्रमुख पुत्र समुद्रविजय ने वैशास्त्र-स्थान से तीर छोड़ा। कुमार वसुदेव ने दूर से हो उसके दो टुकड़े कर दिए, भानो गरुर की चोंच के प्रहार से नाग के दो टुकड़े हो गए हों। इस प्रकार वे दोनों वायव्य, यरुणास्त्री और आग्नेय अस्त्रों, तबवरों, गिरिवरों, मिलाओं; पाषाणों :-इस प्रकार दो हार लाख की संख्यावाले शस्त्रों से लड़ते रहे । फिर, राजा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा जो तभी तामस नामक अस्त्र से नाश को प्राप्त हुआ। उसके द्वारा जो भो तीर भेजा जाता, वह उसे नष्ट कर देता । वसुदेव इस प्रकार प्रहार करता कि भाई समुद्रविजय नष्ट नहीं होता । चार द्वार वाले युद्ध-प्रांगण को बनाकर उसने अमरांगनामों को संतुष्ट किया और अपने नाम से अंकित महाबाण फेंका। [उसमें लिखा था] सहोदर वसुदेव तुम्हें प्रणाम करता है।
घता-अंधकवृष्णि का पुत्र नेत्रों के लिए आनंददायक दस में से सबसे छोटा, किसी प्रकार वियुक्त, परन्तु देव से लाया गया, मैं वही तुम्हारा भाई हूँ ॥१४॥
1. सब-कित दुरुंडउ रहो जि कुमार । २. ज, प-पुण मम्मत्यु पर्मास्त्र] ।