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________________ ३०] [सयंभूएवकए रिट्ठणेमिपरिए - अपान मुबाला राहो ही नाम रमै गाह। सरेहि वसहि विपिखण्णउ णं परिच्छिण्णउ भवतसर जिणिवें ॥७॥ सहि अयसरि समरंगणि सुं। अरसंघहो किकरेग पउं ।। लउ हिरणगाठ बहमाणेहि। दूसह विणयर-फिरण-समाहि ।। सहिरहो णेवणेग षणुहत्यें। हिष्णु महारह एक्कै सस्र्थे । पहिं चयारि तुरंगम घाइय । वयवस-पुरबर-पत्थे लाय॥ अबरें आयवत्तु धड अवर। अबरें बाणजालु अगु भवरें॥ जाम पडु अवरु सरु सधइ। णायबासुनगु जेण गिबंधद। ताम विरुखएणवसुएवें। पेसिउ अवचंदु विषु खे ।। घता-तेण सरासणु ताडिद हत्थहो पाडिउ कोडिगुणालंकरिया। गियसत्तुष्पत्तिदोणहो' लक्खणहीणहो पं धणु वह हरिया ॥८॥ जिणेवि पउंड समरु मसराला। गउ वसुएउ लेषि भियसालच ।। पत्ता-- लक्ष्य से युक्त प्रतिपक्ष ने वायव्य तौर उस पर छोड़ा। उसने भी युद्ध में माहेन्द्र अस्त्र के द्वारा दस तीरों से उसे छिन्न-भिन्न कर दिया, मानो जिनेन्द्र भगवान ने संसार छिन्नभिन्न कर दिया हो। उस अवसर पर युद्ध के मैदान में, जरासंध के मत्त अनुचर पौड़ ने दिनकर की असहा किरणों के समान तीरों से उसे घेर लिया। जिसके हाथ में धनुष है, ऐसे रुधिर के पुत्र ने एक ही शास्त्र के द्वारा महारथ को छिन्न-भिन्न कर दिया, चार तीरों के द्वारा पारों अश्व थापल हो गये । वे यममगर के रास्ते भेज दिए गये। एक तीर से छत्र, एक से ध्वज, एक और तीर से बाणजाल, एक और तीर से धनुष को ध्वस्त कर दिया। सब तक पौंड्र दूसरे तीर नागपाश का संधान करता है कि जिससे सारा जग निबद्ध कर लिया जाता है, तब तक वसुदेव ने विरुद्ध होकर बिना लि.सी देर किए अर्धचन्द्र पला दिया। पत्ता-... उसने कोटि और डोर से अलंकृत धनुष को प्रताडित किया और हाथ से गिरा दिया, मानो विधाता ने अपने दुश्मन के उत्पन्न होने से दीन हुए उसका धन छीन लिया हो ॥८॥ वसुदेव लगातार पौंड को युद्ध में जीत कर अपने साले को लेकर चल दिए । वह रथवरों, १. णिह सत्तृपत्तिणहो।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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