________________
[सयमूएअकए रिटुणेमिचरिए पथिय-पणय-सक्षु सुउ कपणए । आउ पाउ गं कोक्का सम्णए ।। पाउप्राउ वह एत्त हे अच्छइ । प्राउ प्राउ इहमाल परिन्छइ ।। भाउ पाउ ए सम्वहो चंगउ । सम्माहरण-विहूसिय-अंगउ ।। आज माउ ए णिरुवम वेहरु । पाज आउ एल वम्महं जेहन । आउ माउ फेम अच्छहि दूरें। एम णाई हक्कारह तरें ।। बंधिषि वियवर वणिवर सत्तिया मामिलासो- रे तय ।। जे में मिलिय संयंबरि राणा । ते ते सयल बि थिय विहाणा। जणु जंपइ तहो सिय आवग्गि ।
रोहिणि जसु करपल्लवे लग्गि।। पत्ता-बुबइ सो मज्झत्थं सुरवरसत्] एह ग जुरजइ सयसहो । घिर चंदायणि विष्णहो परिरमण्णहो ण रोहिगि तिह सपलहो ॥३॥
तो मादत्तमहापजिबंधे। सब्जिय गियरव जरस।। पावियहो कुमारि उद्दामहो।
रयणाई संभवति महिवालहो॥ कन्या ने पथिक (वसुदेव) के नगाड़े का शब्द सुना जो मानो संकेत से कहता है कि याओ, आओ। आओ, आओ वर यहाँ है । आओ, आओ यह माला की प्रतीक्षा करती है। आओ, आओ यह सबसे अच्छा है, और इसका शरीर सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित है। आओ, आओ, यह अनूपम देहवाला है। आओ, आओ, यह कामदेव के समान है । आओ दूर क्यों हो? इस प्रकार नगाड़ा उसे पुकारता है। द्विजवर, वणिकवर और क्षत्रियों को छोड़कर उसने उस प्रतिहारी के गले में माला डाल दी। स्वयंबर में जो-जो राणा सम्मिलित हुए थे, वे सब निराश होकर रह गए। लोग कहते हैं कि लक्ष्मी से वहीं अभिभूत होगा, जिसके हाथ लक्ष्मी लगेगी। ___ घना-सब मध्यस्थ सुरवर-समूह कहता है कि सबके लिए यह उचित नहीं है । शाश्वत चाँदनी के चिह्नवाले और सब ओर से रमणीय चन्द्रमा की तरह रोहिणी सबकी नहीं होती॥३॥ __ तब महा प्रतिबंध प्रारंभ करनेवाले जरासंघ ने अपने पक्ष के राजाओं को संकेत दिया कि इस पैदल चलनेवाले से कुमारी को छीन लो। रन (स्त्रीरत्न) केवल राजा के ही होते हैं। १. .-कण्णई। २. म--सग्णाई ।