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तहको सग्गो]
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पत्ता-णिय-सामिणि-अणुलागी करिणि व लागी बाद णराहिल भाव। आयह मज्ने प्रसेसहं उज्जलवेसह लाइ जुवाण जो भावा ।।१।।
जोवइ बाल धाइ परिसाबह । एमवि णरबह मणही ण भावद।। पंचिय 'कंचणमंत्रमयंघहं। किव-गेय-कोण-जरसंघहं ।। वंचिय इंद-पडिद-सुरीसव । विणिवि सोमपत्त-भूरीसत्र । बंचिय विजर-पंडु-षयरद्वदि । केरल-कोसल-जवण-घट्टवि || बंधिय भोट्ट-जट्ट-जालंधरवि । टक्क-हीर-कीर-खस-बध्यरवि ।। गुज्जर-लाउ-गउड-गंधार-वि । सिंधव-मद-सुरट्ठ-बसारवि। यांचय उगसेप-महसेण वि। देवसेण-सुरसेण-सुसेवि ।। बंभणइम्भ से वि णवि जोइय ।
जहिं तूरहं तहिं करिणि चोहय ।। घसा-हि पणवंतहं भरि' जो जो अंतरि सो सो कोवि ग भावइ ।
सवणेदियह सुहावउ गं परिणावउ पडहसद्द परिभावइ ।।२।। ___घत्ता-धाय अपनी स्वामिनी के पीछे हथिनी के समान लगी हुई उसे राजा दिखाती है। उज्ज्वलवेष वाले इन समस्त लोगों के बीच जो युवक अच्छा लगे उसे वर लो॥१॥
बाला देखती है, और धाय दिलाती है, उसके मन को एक भी राजा अच्छा नहीं लगता। स्वर्णिम मंचों से मदांध कृपाचार्य, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और जरासंध को उसने छोड़ दिया । इन्द्र, प्रतीन्द्र और शूरिधव को भी उसने छोड़ दिया। सोमदत्त और भूरिश्रव दोनों को भी उसमे वंचित किया । विदुर, पाड़ और धतराष्ट्र को बंषित किया । केरल, कोसल, यवन और थाट (?) को वंचित किया। भोट, जाट और जालंधर को वंचित किया। टक्क (पंजाब), हीर, कीर, खस (फश्मीर के दक्षिण का प्रदेश), बर्बर, गुर्जर, लाट, गौड़ और गांधार को भी; सैंधव, मद्र, सौराष्ट्र और दशाहों को भी वंचित किया। उग्रसेन और महासेन को भी: देव सेन, सुरसेन, सुषेण को भी; ब्राह्मणों और धनाढ्यों को भी उसने नहीं देखा। जहां नगाड़े पें, वहाँ उसने थिनी को प्रेरित किया।
पत्ता-वहाँ नगाड़ा बजानेवालों के भीतर बीच-बीच में जो जो दिखाई देता है, वह कोई भी अच्छा नहीं लगता। उसे केवल थवणेन्द्रियों को सुहावना लगनेवाला विवाह के नगाड़े का शन्द अच्छा लगता है ।।२।।
१.
—वण्णहम्मतरि । २. --सणिदयहं ।