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तझ्यो सगो]
रुटिरहिरगगाह बोल्लाह। जह ण वेइ तो यमपहे लायह ॥ धाइय परवर पहुमाएसे। णं जमकिंकर-माणुसवेसें ॥ तहि अवसरि वसुएक्हो ससुरें। सो णिरुख णं केवि असुरें। रहि अप्पणई चढायउ जायज । सिहरि महोहरेण णं पायउ॥ तो णिवांव तापही संधणे। थिउ 'पप्पुभ-कामहणे ॥ तो पसरिय रणरहसणुराएं।
बुच्चड़ लोहियमषु जामाएं ॥ पत्ता-सरह सहासगु विज्जत एतिङ किज्जर पण माम लस्वावमि। एंतु एंतु अरि उपरि हउं गरकेसरि हरिण बेम उदावमि ॥४॥
परिणिउ कलसु को उद्दाला। को इंदहो देवत्तणु टाला॥ को फणिवदह फणामणि तोग्य। वश्वस-महित-सिंगु को मोह ॥ तुम्हई विपिणवि रोहिणि पखहो । हउं अम्भिमि एक्क परियाखहो ।। वहसिहि थरत सर लायमि ।
उद्ध कबंध-णिबहु णचावमि ॥ सोहिताक्ष और हिरण्यनाभ से कहो । “यदि वह कन्या न दे, तो उसे यमपथ पर भेज दो।"प्रभु के आदेश से अनुचर दौड़ें, जैसे मनुष्य के रूप में यमकिंकर हों। उस अवसर पर पसुदेव के ससुर ने, किसी असुर के द्वारा निरुद्ध यादव को अपने रथ पर चढ़ा लिया, मानो पर्वत ने वृक्ष को अपने शिखर पर चढ़ा लिया हो । वब विचार कर वसुदेव ससुर के दर्प से उक्तों को चकनापुर करनेवाले रप पर स्थित हो गए । इतने में जिसमें युद्ध के लिए हर्ष और अनुराम उमड़ रहा है ऐसे जामाता ने लोहिताश से कहा---
पत्ता--"रथ सहित धनुष मुझे दो, इतना कीजिए । हे ससुर ! मैं आपको लज्जित नहीं करूंगा। दुश्मन आए, दुश्मन आए, मैं उसे उसी प्रकार कपर उड़ा दूंगा जिस प्रकार सिंह हरिण को उड़ा देता है ॥४॥
विवाहित स्त्री को कौन छीनसा है ? इन्द्र का इन्द्रत्व कौन टालता है ? नागराज के फणामणि को कौन तोड़ता है ? यम के मंसे के सींग को कौन मोड़सा है ? आप दोनों रोहिणी की रक्षा करें, मैं अकेला ही शत्रु-पक्ष से भिडगा। शत्रु पर परतेि हुए तीरों की बौछार करूंगा । के घड़ों के समूह को नचाऊँगा।" जब कुमार वसुदेव ने इस प्रकार गर्जना की, तो ससुर ने उसे सारथि १. य-- दापभडकरवंदणे । २. अ—को कलत्तु ।