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मिइयो सगो]
पत्ता--अपणही एड ण उप्रणही पिण्णागुण एतबद्ध। एक जगु जिणिषि समस्य महचिसु किर केत्तम् ॥७॥
सुमाग्रहसरेहि' सरीच भिण्णु। वसुएवं मोहणु णाई दिण्फु॥ विवच्म'मण एक्कु वि ण फस जाई। चरे बाहें विद्धि हरिणि पा॥ लोपगई णिधा लोपहि। सबंगई अंगगिषणेहि ॥ चित्तण चिसु णिञ्चलु मिन्द। जीवगाह-गुत्तिए णाई एक वणितणए मयणपरबसाएं। पत्तिय णयणुप्पलमाल साए॥ परिणिज्जइ हरिकुलणंवर्गण। तरुणीयण-थण-महणेग॥ रह-रसवस इय अमछसि जाम । फरगुण-णंदौसर टुल्कु ताम ।। सुरणर-विम्जाहर मिलिय सत्य।
सिरिधासुपुज्जमिण जस मेत्यु । पत्ता-'ता तित्यु गयाई सबिलासई रहवरे परिपाई। र विणषि णं सई सुरवह-सगहो परिपाई ॥८॥
जिणभषणहो बाहिरि ताम करण।
मायगिणि णच्चद सुवण्णवण्ण ।। घसा-ग्रह किसी दूसरे का रूप नहीं है ? किसी दूसरे का यह विज्ञान नहीं है ? पह विपण को जीतने में समर्थ है । मेरा चित्त कितना-सा है ॥७।।
कामदेव के आयुधतीरों से उस गंधर्ष सेना का शरीर विद्ध हो गया, जैसे वासुदेव ने संमोहन कर दिया हो। व्याध के द्वारा उर में आहत हिरनी की तरह वह एक कदम नहीं चल पाई। नेत्रों से नेक बंध गए, शरीर के निवन्धनों से सारे अंग बैंध गए, और चिस से अरिंग चित्त इस प्रकार बंध गया, जैसे वह जीव लेने वाले कठघरे में बाल दिया गया हो। कामदेव के अधीन होकर उस श्रेष्ठिकन्या ने अपने नेत्रों की कमलमाला उस पर गल दी। युवतीजनों के स्तनों का मर्थन करनेवाले हरिवंश के पुत्र वसुदेव ने उससे विवाह कर लिया। इस प्रकार वे जब कामक्रीड़ा के अधीन रह रहे थे, तभी फागुन नन्दीश्वर-अष्टाहिकपर्व मा पहुंचा। बड़े-बड़े देव और मनुष्य वहाँ इकष्टुं हुए जहाँ वासुपूज्य जिनवर की 'यात्रा' थी।
पत्ता--वे दोनों (वसुदेव और गंधर्वसेना) रथ पर सवार होकर इस प्रकार उतरे, जैसे स्वर्ग से क्रमशः इन्द्र और इन्द्राणी अवतरित हुए हैं ।
इतने में सोने की रंगवाली मातंगकन्या जिन-मन्दिर के बाहर नृत्य करती है--जिसने १. ज-कुसुमायुइसरेहि । २. प्र-विवण । ३. अ, अ—इमि तित्युगयाई ४. न, अ, ब--सयं ।