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[सयंभूएवकए रिट्ठणेमिचरिए
भपाणु पयासिर सेण तेत्यु।
मिलिया भूगोधर सबई जेस्प ॥ घसा-विज वणितणयहे पासि बसुएज वि एग्जा मसगउ । 'पल्ला देहि वत्ति भरजह मरट जेण अण्जतउ ॥६॥
तो बीगा-साहालाई खोइयर। बसुएवं साईण जोइयई॥ विरसई जग्जरई फुसखिई। सम्बई लक्षण-परिवज्जिई ॥ सत्तारहं संक्ति सुधीसवीण। सुहलपक्षण अवलक्खण-विहीण ॥ पल्साइय कुमारहो करि विहाई'। बालहिय सुकंसहो कंतणा ॥ पारद मणोहरु तंतिवन्छु। ण कारण तेत्युपाणु अन्जु गं जिगबर सासगु रिसह सार।
बहुलपक्ख-मह संवतार ॥ परिचितामणे गंषण्वसेण । कि मम्मह पिउ माणुसमिसेग। कि सरगही सुरवर कोषि प्रात।
कि किरणर गंधवराज आउ ।। वीणा के द्वारा जीत ली जाएगी, वह उसीसे विवाह करेगी।" तब शौर्यपुरी के स्वामी (धसुदेव) ने अपने को वहाँ प्रगट किया, जहाँ सैकड़ों मनुष्य इकट्ठे हुए थे।
बला-बसुदेव को वणिकन्या गन्धर्वसेना के पास ले जाया गया। वह वहाँ मतवाले गज की भांति जान पड़ते थे। उन्होंने कहा---“शीघ्र वीणा दो, जिससे आज तुम्हारा अहंकार नष्ट किया जाए" ॥६॥
तब हजारों वीणाएं उपस्थित की गयीं। वसुदेव ने उनकी ओर देखा तक नहीं। वे सच नीरस जर्जर, कुसाजवाली और लक्षणों से रहित थीं। सत्तरह तारों वाली सुघोष चीणा शुभलक्षणों वाली और अपप्लक्षणों से रहित थी। कुमार वसुदेव के हाथ में वह ऐसी सोह रही थी, जैसे सुकांत की सुन्दर कान्ता हो । उसने वीणा को सुन्दरता से इस प्रकार बजाना शुरू किया मानो उसे बजाने का सुन्दर कारण उत्पन्न हुआ हो । वह वादन ऋषभसार (ऋषभ तीर्थंकर ऋषभराग) वाला, जिनवर शासन हो या मंदतार (मंद स्वर और तारों वाला) कृष्णपक्ष हो । तब गन्धर्वसेना अपने मन में सोचती है--स्या यह मनुष्य के रूप में कामदेव है ? क्या स्वर्ग में कोई श्रेष्ठ देव आया है ? क्या किानर या देवराज आया है ?
१.न,R-बोल्खहि । २. ब-विहाय । ३. जाम---माणुसवेसेण ।