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विहमो सग्गो]
पतितलिउ विमाणु खतरेण । अंगारज ताडिउ असिवरेण ॥ तेण वि परिचितिज करमि एम।' णज मन्सुण सामहे होइ जेम ।। पण्णसह विजाहरेण मुस्क। भूगोयर पयणयरे दुक्कु॥ गहि वासुपुज्जविणदेव-भषण ।
पिसिणिगमे इंविय-वप्प दमणु ।। पत्ता-बंदिउ परम जिणिदु परमेसरे तिहुयण-सिहरगड।
जब तुई गाह ण होंतु तो भव-संसार हो छेउ गउ ॥५॥
जिणणाहणविप्पिणु ण किउ खेउ । ताहि कोवि पपुच्छिउ भूमिवेज ॥ अहो विमवर अणनउ कवणु एंट्छ । किम णाम णयक पंडरियगेह ॥ मायासह। कि सुहं पहिल वस । जंण सुण लोयपसिद्ध चंप ।। बहि णिवसई णिवधम-रिदिपतु । पणिणंवणु णामें चाश्वत॥ तहो तणिय सणया गंधव्वसेग। परिणिज्जइ जिम्ना अज्जफेण ॥ आलावणि-वज्जे मणहरेण ।
सो सउरीपुर-परमेसरेण ॥ क्षण में तलवार से आहत विमान और अंगारक स्खलित हो गया। उसने भी अपने मन में सोचा कि ऐसा करता हूँ जिससे यह न मेरा हो और न श्यामा का। विद्याधर ने पर्णमध्वी विद्या छोड़ी। मनुष्य (वसुदेव) चंपानगर में पहुँचा, जहां पर वासुपूज्य जिनदेव का भवन था । रात्रि बीतने पर इन्द्रियों का दमन करने वाले -
घाता—परम जिनेन्द्र की वंदना की ...हे त्रिलोक-शिखर के पर जाने वाले परमेश्वर ! हे नाथ! यदि तुम न होते, सो इस पत्र-संसार का अन्त नहीं था ॥५॥
जिननाथ को नमस्कार कर, बिलम्ब न करते हुए किसी ब्राह्मण से पूछा-..."हे द्विजवर ! यह कौन-सा जनपद है, सफेद गृहों वाला यह कोन-सा नगर है ? (द्विजवर ने कहा) "तुम बेचारे क्या आकापा से आ पड़े हो, क्या तुमने प्रसिद्ध चंपा नगरी को नहीं सुना, जिसमें अनुपम ऋद्धि को प्राप्त (का पात्र) चारुदत्त नाम का वणिकपुत्र निवास करता है। उसकी गंधर्वसेना नाम की कन्या है। जिसके द्वारा यह आलापणी नाम की
—करमि एण।