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[सयंभूएवकर रिटुणेभिरिए परिपुण्ण-मणोरह मजदेव॥ हर्ष मच्छिमालि इज वायुवेउ। णियस्वोहामिय-मयरकेउ । वे अहह तुम्हाई पखवालु। सुणि कहमि कहतर सामिसालु ॥ वेयड्ढे कुंजरायत्त णयरु। तहिं प्रसणिवेउ गामेण खयर ॥ तहो तणिय तणय णारेण साम। वीणापयोण रामाहिराम ॥ कमलायरि कुंजरु जिणह जोज्मि । भत्तार ताहे संभवद सोजि ॥ सो तुई करि पाणिग्रहणु देव ।
"णिउ पुर परिणबह भोव एवं॥ पत्ता सामाएवि लएवि परिझसे थिउ बढारएग। गरुड़ें जेम भुगु जिउ गिसिहि हरिवि अंगारएण ॥४॥
जं णित बसुएउ महाबलेण। कढे लग्ग साम सई णियबलेण ।। मर मा कहि मह पिउ लेवि जाहि । जइ धीरउ तो रणे थाहि थाहि ।। पिज्जाहरु बलि कमंतु जेम । तुई महिल बराई हमि केम ।। परमेसर पभणइ अक्षु तोवि।
कि रक्ससि खेति ण हण कोवि ।। नमस्कार कर इस प्रकार कहा, "हे देव! आज हमारा मनोरथ सफल हुआ। मैं अर्थिमाली हैं और यह वायुवेग है। अपने रूप से कामदेव को पराजित करने वाले हे स्वामिश्रेष्ठ ! आपके हम दोनों रक्षा करने वाले हैं। मैं कथान्त र कहता हूँ सुनिए, विजयाध पर्वत पर कुंजरावर्त नाम का नगर है । वहाँ अदानिवेग नाम का विद्याधर है । उसकी स्पामा नाम की कन्या है जो बीणा में निपुण और सुन्दरियों में सुन्दर है। इस सरोवर में जो भी हाथी को पकड़ लेगा वही उसका पति होगा। तुम वही हो इसलिए हे देव ! तुम उसका पाणिग्रहण करो।" यह कहकर उसे नगर ले जाया गया।
यता-श्यामादेवी को लेकर वह परिरमण में स्थित ही था कि इतने में बड़ा अंगार रात में उसका अपहरण करके उसी प्रकार ले गया, जिस प्रकार गरुड़ सांप को हरकर ले जाता है ।।४॥ ___ अब महाबली के द्वारा वसुदेव ले जाया गया, तो श्यामा अपनी सेना के साथ उसके पीछेलगी और बोली- "मर, मर । मेरे प्रिय को लेकर कहा जाता है ? यदि धर्य है, सो पुस में ठहर ठहर ।" विद्याधर यम की तरह मुढ़ा और बोला, "तुम बेधारी महिला हो, कसे माह ? परमेश्वर (वसुदेव) कहता है-"फिर भी बताओ, क्या कोई खाती हुई राक्षसी को नहीं मारसा ? १. गिज पुरु परिणामिओ भणेवि एव । २. प्र—विज्जाहर वलिओ।