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________________ [सयंमूएक्कए रिट्ठणेमिचरिए गिरि-गण-तुंग-सिग-आलिपिय-चंदाइच-मंडलं । तत्य भयावणे वणे दोसइ गिम्मल सीयस जलं ॥ धत्ता–णाम सलिलावत्त लक्लिज्जाइ मणहर कमल सर । गाई सुमिते मित्तु श्रवगाहिउ णयणाणक्यच ॥१॥ जन्य साथ- विला मच्छ-कच्छ-विच्छुलाई ॥ रायहंस-सोहियाई। मत्तहस्थि-डोहियाई ।। भीतरंग-भंगुराई। तारहारपडुराई ।। पउमिणी-करंबियाई। चंचरीप-चुंबियाई॥ मारुप्प प्राप] बेवियाई । चमकवाय-सेबियाई॥ पक्क-माह-माणियाई। एरिसाई पाणियाई॥ सेयणील-लोहियाई। सुररासि-धोहियाई॥ मत्त छप्पयाउलाई। जत्य सरिसुप्पलाई॥ धत्ता -तेत्यु रउद्गइंदु घाइयउ सबमहणरवरहो। 'अहिणव-चासारितुहि गज्जंतु मेह णं महोहरहो ॥२॥ विशाल और नागराजों की फणमणियों की किरणावलियों से भयंकर है, जिसने पर्वत समूह के कैसे शिखरों से चन्द्रमा और सूर्य के मण्डलों को आलिगित किया है, ऐसे उस भयावह वन में उसे स्वच्छ और शीतल जल दिखाई देता है॥१॥ घसा-रालिलामत नामका सुन्दर कमल-सरोवर दिखाई देता है। उसने उसका ऐसा अवगाहन किया जसे सुमित्र ने नेत्रों को आनंद देने वाले मित्र का अवगाहन किया हो। जिरा (सरोवर) में जल प्राणी-समूह से आपूरित है, जो मत्स्यों और कछुओं से व्याप्त है, राजहंसों से शोभित है, मलवाले हाथियों से आन्दोलित है, भयंकर लहरों से वक्र है, स्वच्छ हार की तरह धवल है, कमलिनियों से अंचित है, भ्रमरों से चुम्बित है, हवाओं से कम्पित है, पक्रवाकों से सेवित है, मगरों और ग्राहों के द्वारा सम्मानित है। इस प्रकार के सरोवर के जल में श्वेत, नीले और लाल, सूर्य की किरणों से विकसित, मतवाले श्रमरों से आकुल सरस कमल थे। पत्ता-वहाँ पर, उस नरवर (वसुदेव) के सामने गजेन्द्र इस प्रकार दौड़ा, मानो नई बर्षाऋतु में गरजता हुआ महामेघ पर्वत पर दौड़ा हो ।।२।। १. -भीम रंग-मंगुराइं । २ ज, अ, ब-अहिणववासारत्तुहि।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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