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________________ विईओ (दुइज्जो) सग्गो सिरि सुग्गीय-सुभाउ परिणेपिणु णपरहों णीसरइ। णाई णिरंकुस-याउ बसुएज महावणु पइसरह ॥७॥ हरिवंसुम्मण त्रिविषकमसारवलेण रग्णयं । वीसाइ देवदारु-तलताली-तरल-तमाल-छपणर्य ।। लवलि-लवंग लउय-अंबु-उन असमविश्व-वि । सामलि-सरल-साल सिणि-सल्लइ-सीमव-समि-समिद्धयं ॥ संपय-चूम-चार-रवि-चंदण-बंदण-चंक सुंबरं । पत्तल बहल-सीयल छाय-लयाहर-सयमणोहरं ।। मंथरमलयमाश्यंदोलिप-पायव-पडिय-पुष्फयं । पुष्फोह-सहल-भमलावलि-णाविय-पहिय-गुप्फयं ॥ केसरिणहर पहर-खरदारिय-करि-सिरभिन्न मोत्तियं । मोतियति-कंति-धवलीकय सयल विसा वहतियं ॥ "खोल्ल-जलोल्ल तल्ल-लोलंत लोलकोल-उल-भीमणं । यायस-कंक-सेण-सिव-जंबुअ-धृय विमुक्कणीसणं ।। मयगय-मय-जलोह-कय कद्दम' संखुमत वणवरं । फुरिय फणिवफार-फणिव-मणिगण-किरण-करालियांबरं ॥ श्री सुग्रीव की कन्याओं से विवाह कर वसुदेव नगर से निकलते हैं और अंकुशविहीन गज की भाँति महावन में प्रवेश करते हैं। हरिवंश में उत्पन्न तथा सिंह के पराक्रम के समान सारभूत बल वाले वसुदेव को महावन दिखाई देता है । वह वन देवदार ताल-ताली और तरल तमाल वृक्षों से आच्छादित है, लवली लता, लवंगलता, जामुन, श्रेष्ठ आम और कपित्य वृक्षों से समद्ध है । शाल्मलि, अर्जन, सान, शिनि, सत्यकी, सीसम और शमी वृक्षों गे सम्पन्न है। चम्पा, आम, अचार, रविचन्दन और वन्दन वृक्षों के समूह से सुन्दर है । जिनमें बहुत से पत्ते हैं ऐसे ठंडी छायाधाले सैकड़ों लतागृहों से जो सुन्दर है, जिस में धीमी-धीमी मलय हवा से आंदोलित वृक्षों के पुष्प गिरे हुए हैं, जिसमें पुष्पसमूह सहित अमरायनी द्वारा पथिकों को झुका दिया गया है, जिसमें सिंहों के नखों के द्वारा तीनता से फोड़े गए हाधियों के सिरों से मोती बिखेर दिए गए हैं, जो गहवरों के जल-समूह में हिलते हुए सुअरों के समूह से भयंकर है, जिसमें वायसों, बगुलों, सेनों, सियारों और सियारिनों द्वारा शब्द किया जा रहा है, जिसमें मदगजों के मदजल समूह की कीचड़ से वन्य प्राणी कुपित हो रहे हैं, जिसका आकाश कांपते हुए नागों से १. दलित । २. ज प्र-सोल्लजलोल्ल-लोलतहो लोल कोलकुलभीमणं। ३. ज, प्रकहम-संकुज्झतवणयरं।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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