________________
[ सयंमूएवकए रिट्ठणेमिचरिए पत्ता षुणिषणे बंधु-वावातिहि छुट्न। घिउ वसुएव-गई विणयंलेण णियबल ॥१०॥
सहि अवसरि गरघर-पुग्गिए। सिक्रषिहे आणि जिथए । वामीयर-भायग-समलहणु। 'परिमल-मेलाविय-भमरयमु॥ सं मंड कुमारण' अवहरित। सहो तणउ भिएपिणु गुम्बरिङ॥ पारद मुठ्ठ सहलिधि-मुह । पाएहि नुवालिहि पतु वह ॥ विवभनाइ मिह मत्तगा। काठरसहो धोरिम होई का। परियाभिषि आपर-वंचनाउ । किर कन्नु कुमार अप्पण, पिपलिउ ससहयरु एकु जणु । गर रामहे भोसणु पेयानु॥ बहिं जमुवि छलिज्मा गाहिं ।
गह भूप-पिसामहि जोणिहि ।। पत्ता-तं पसरा मसाणु में सुरई मि भड लाविज । पाई भुक्खिएक कालेण मुहूं जिम्काइउ ॥११॥
णियमिछयं मसाणये। जगावसाण-थागणं ॥
उलूमतह-णाइये। पता-बचन रूपी गुप्तियों से प्रेरित और विनय रूपी प्रग से निबद्ध वासुदेव रूपी महागज भाई के निबन्धन में स्थित हो मया ॥१० ।।
उस अवसर पर नरवरों से पूज्य कुब्जा के द्वारा शिवदेवी के लिए लाया गया; चाँदी के बर्तन में रक्षा हुआ, सौरभ के कारण जिरा पर भ्रमरगण इकट्ठे हो रहे है, ऐसा उबटन कुमार ने बलपूर्वक छीन लिया। उसके दुराचरण को देखकर दासी का मुख एकदम लाल हो गया। [वह बोली| इन्हीं दुश्चालों के कारण तुम मतवाले हाथी की तरह वृक्ष बन्धन को प्राप्त हुए । कापुरुष को धीरज कैसे होता है ? भाई की प्रवंचना को जानकर कुमार ने अपना काम किया। एक सहवर के साथ वह अकेलः घर से निकल पड़ा। रात में भीषण प्रेत-वन में पहुं। जहाँ साइनों, ग्रहों, भूत-पिशाचों और योगलियों के द्वारा यम को भी छला जाता है।
. घत्ता..-वह उस मरघट में प्रवेश करता है, जिसके द्वारा देवों को भय उत्पन्न कर दिया गया है, मानो भूखे काल के द्वारा मुख फैला दिया गया हो ॥११॥
उसने मरघट देखा, जो लोगों के अन्त होने का स्थान था, जो उहलुओं के समूह के कारण
१. ज, प्र--- मलावियभमर यण। २ जन-कुमार