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पढ़मो सम्गो) .
थियणाह-महार उम्मडिपई॥ जोहज्जह मयणम्मत्तियहि । वह भायर परकुल-उत्तियहिं ।। ला भुजि भगरा रमण वर्ष।
पय जान कहि मि जहिं सहइ सहूं। घत्ता-जं तप्पकबह बाल सहहि मि थियभत्तारें। रमणुरुप बालेर गदि मुना
तं णिसुनुषि णरवइ कुदय मणे। कोक्कि वसुएउ कुमारु खणे ।। तहो अलिप-सणे, लागु गले। प्रालिगिवि धुनिउ सिरकमले। उपोलिहि' पुणु बासारिया। पन्छण्ण-पतिहिं वहरियउ॥ संप कुमार वीसहि विमगु । परिहरु पुर-बाहिर-णिग्गभषु ॥ पानोति-घूलि-पायाउ-पवणु। आयई वि साहिप्पिणु फलु कवणु॥ गयसालहि मत्तगयंद परि। परपंगणे कंदुन-कील करि॥ पच्छिम-उल्लाणे मणोहरए। कुरु केलि-विठले केलीहरए ॥ मवरेहि विषोयहि अच्छु तिह।
विहाणउ अंगुण होइ जिह॥ दंड ने सबको अवरुद्ध कर लिया हो । गृहिणियों ने घर के काम और पत्तियों के सुन्दर मुख छोड़ दिये हैं। काम से उन्मत्त परकुल पुत्रियों के साथ तुम्हारा भाई देखा जाता है । हे आदरणीय ! अपना राज्य संभालिए। आप ही इसका उपभोग करें। प्रजा कहीं भी जाए, जहां उसे सुन प्राप्त हो सके। ..
पत्ता-गदि सती के अपने स्वामी से पुत्र होता है. तो कुमार जो भी बातें करता है, उनका अनुभव वह करे | __ यह सुनकर राजा समुद्रगुप्त मन में कुपित हुआ। एक क्षण में उसने कुमार को बुलाया । वह झूठे स्नेह से उसके गले लगा, आलिंगन कर उसने सिरकमल चूमा और फिर गोद में बैठाया । उसे प्रच्छन्न वचनों से उसने मना किया । हे कुमार ! तुम इस समय उदास दिखाई देते हो, नगर के बाहर जाना बन्द करो! तूफान, धूल, धूप और पवन–इनको सहन करने का क्या फल? तुम गजशाला में मतवाले हाथी पकड़ो, घर के आंगन में गेंद की क्रीड़ा करो (गेंद खेलो), सुन्दर पश्चिम उद्यान में विशाल क्रीड़ागृह में क्रीड़ा करो, दूसरे दूसरे विनोदों से इस प्रकार रहो कि जिससे तुम्हारा शरीर म्लान न हो । १. म-उच्छोलिहि।