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[ सयंभूएवकए रिट्ठणेमिचरिए तण घर ण चच्चर पवि सह । जहि गज वसुएथहो तणिय कह ॥ काहि वि पहपासि परिट्टिया। णाई उहइ हुवासण अट्टियउ॥ मोल्लाविय कावि वयंसियए। सो सुरकिट्टप मह हियाहे ।। गाहरण णवि रुचाइ भोयणउ।
'ण पहाणउ गवि फुल्सु विलेवण उ । घत्ता–देवर ससुर-पहहि म सरीरु रविवजह । णिम्भरणेह-णिबंधु-चित्तु केण धरिज्जाइ॥
एहिय अवस्य जंजाय पुरे। जे जे पहाण ते करिवि धुरे ॥ पुरपउर महायणु भजविणु [भगमणु कूवारें मउ गरव-भवण ॥ ग्रहो अंधविट्ठ-सुबह-सुय। सियनेयीवल्लह सग्गज्य ॥ परमेसर परम पसाउ करे। णिग्गमण कुमार हो तणउ परें ।। चसएहवें रट्टण मोहियउ। णं कम्महद रोहियउ ।। धरिणिहि घरकम्मई छडियई।
णियपाह-महई उम्भडियई ॥ नहीं और सभा नहीं थी जिसमें वसुदेव की कथा न होती हो । वि.सी के पास बैठा हुआ पति ऐसा जलाता है जैसे आग हड्डियां जलाती हो । सखी के द्वारा किसी से यह कहा गया कि बह सुभग मेरे हृदय से अलग नहीं होता । न तो आभूषण अच्छे लगते हैं और न ही भोजन, म स्नान, न फूल और न लेप ।
घत्तर–देवर, ससुर और पति के द्वारा मेरे शरीर की रक्षा की जाती है, लेकिन पूर्ण स्नेह से रचित चिस को कौन बचा सकता है ?||८||
जब नगर में यह हालत हो गयी, तो जो प्रधान लोग थे, उन्हें आगे कर, नगर के प्रवर महाजन भग्न मन हो करुण पुकार करते हुए राजभवन गये। (उन्होंने कहा) हे सुभद्रा के पुत्र अंधकवृष्णि ! स्वर्ग से अवतरित हे शिवदेवी के पुत्र! हम पर प्रसाद कीजिए 1 कुमार का बाहर निकलना रोकिए। कुमार वसुदेव ने नगर को मोहित कर लिया है। मानो कामदेव के दण्ड ने सबको अवरुद्ध कर लिया हो। गृहणियों ने घर के काम और पतियों के सुन्दर
१. म, ब-हाणुवर गवलण फुल्ल बिलेवण ।