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________________ पहमो सम्गो 1 'णरवह-विट्ठएं रन्जु करतें। महुरापुरवा परिपालते॥ बासहो-सणिय वहिणि पउमावह । परिणिय च रोहिणी णावइ ।। जाहेका गी'जमार। उगासेण उग्गाह मि उमगउ । पुषु महासेणु महारणे उज्ज। बेवसेण देवाहं भि पुस्मउ ।। पुणु गंपारिकण्ण-बलवंतहो ।। मगहामंडल परिपाललहो। दुसरसमर-भरोढियकंघहो। णिरुवम रिख जाप जरसंघहो। मंब तिखंज वसुंधरी सिहो। रयण-गिहाणान-समिद्धी। जायब-पंडल-कुरुव-हाणी। रावण रिद्धिहे अणुहरमाणो।। पत्ता-ताम सिलोय-पईड भिलिय-सुरामर-विंदहो। सतरीपुरि उप्पण्णु केवलमाणु मुणिवहो ॥५॥ तो परमरिसिहे सुपइट्ठहो । सम्माणि गंधमाणि ट्ठियहो । सउरिपुर-सीमा-वासियहो। णरणाय-सुरिंव-णमंसियहो । सयलामल-केबल-कुलहरहो। राज्य करते हुए और मश्रा नगर का परिपालन करते हुए नरपतिवष्णि ने व्यास को बहन पपावती से वैसे ही विवाह किया, जैसे चन्द्रमा रोहिणी से करता है । उसका पुत्र सूर्य की तरह उत्पन्न हुआ । उग्रसेन तयों में भी उग्र था। फिर महासेन हुआ जो महायुद्ध में उद्यत रहता था। देवसेन देवों में भी पुज्य था। फिर उस बलवान के गंधारी कन्या उत्पन्न हुई। मागधमंडल का परिपालन करते हुए तथा दुर्धर पुद्धभार से ऊंचे कंधों वाले जरासंध की अनुपम ऋद्धि हो गई। बलपूर्वक उसे तीन खंड घरती सिद्ध हो गई, जो आधे-आधे रत्नों और खजाने से समृद्ध यादवों और कौरवों के लिए हानिस्वरूप तथा रावण की ऋद्धि के समान थी। घत्ता-इतने में, शौरीपुर में, जिनके लिए सुरों और देवों का समूह मिला है, ऐसे मुनीन्द्र सुप्रतिष्ठ को त्रिभुवनप्रदीप केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ||५|| जो गन्धमादन उद्यान में स्थित हैं, शौर्यपुर की सीमा के निवासी हैं, मनुष्यों, नागों और देवों १. ज—रवइ विट्ठए रज्जु करते। २. ज. अ, ब -दिणमणि व समुग्गव ।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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