________________
× 1
[ सयंमएकए रिटुमिचरिए
धता
तं सुणिवि वयणु मुनिमणीहरु । सुणि सेजिय साहास गणहरु । सूरवीर हरिवंस पहाणा । सजरी - महुरा-पुरवर- राणा ।। अंधविट्टि जाणिज्जइ एक्के । णरवखिट्टि पुर्ण प्रोक्कें ॥ सूरसुयहो तो रज्ज करतहो । सउरीपुरहो परिपातहो ।' सत्तावीस जोजण महिहो । वासह सह परासर बुहियहो । पुत्त सुहद्द बस उप्पण्णा । णं बलोवाल प्रवइण्णा तेत्बु समुविज पहिलार । पुणु लोह रणमर- बृरधारउ ॥ चिमिय पयावइ सय उप्पज्जइ । हिमगिरि-अचलु-विजउ जागिज्जइ ॥ धारणु पूरण सह हिचंवें । पुणु वसुएज जाउ आनंदे ॥
-ताहं सहोयरियाज कोंति मविवे कष्णउ । णं वधम्म-हुधा संति दयाउ उप्पण्णउ ॥४॥
मुनियों के लिए सुन्दर उन वचनों को सुन कर गणधर (गौतम) कहते हैं - हे श्रेणिक ! सुनो, हरिवंश के प्रमुख सूर और वीर श्रेष्ठ नगरों शौर्यपुरी और मथुरा के राजा थे । एक ( सूर) से अंधकवृष्णि का जन्म हुआ और दूसरे से नरपतिवृष्णि का । राज्य करते हुए और सताईस योजन आयाम वाली चीर्यपुरी का परिपालन करते हुए सूर के पुत्र अंधकवृष्णि के व्यास की बहन, और पाराशर की पुत्री सुमद्रा से दम पुत्र उत्पन्न हुए, मानो दस लोकपाल ही अवतीर्ण हुए हों। उनमें समुद्रविजय पता था। दूसरा अक्षोभ्य युद्ध के भार की धुरी को धारण करनेवाला था। फिर स्तमित, प्रजापति और सागर उत्पन्न हुए। फिर हिमवान, अचल और विजय ( नाम से) जाने जाते हैं। अभिचन्द के साथ धारण और पूरण का जन्म हुआ, फिर आनन्दपूर्वक वसुदेव उत्पन्न हुए।
धत्ता- उनकी कुन्ती और माद्री नाम की दो कन्याएं सगी बहनें थीं जो ऐसी जान पड़ती र्थी मानो दस धर्मों से शान्ति और क्षमा का जन्म हुआ हो । ॥४॥
१. ज – जाणिज्जइ । २. ज, अ, ब -
- सजरीपुरवर परिपात हो । ३. ३ में दुरियहे पाठ सही है, परन्तु तुक के कारण दुहियहो पाठ रखा गया। ८. व- हुवाउ ।