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परमो सरपो।
पत्ता---पुच्छई मागणाह भव-अर-मरण-वियारा। विउ जिपसासणि केम कहि हरिवंसु भगरा ॥२॥
पउ छिट्ठा मामवि अखि मणे । विवरेरक सुबह सव्वजगे। णारायणु णरहो सेव करइ। र खेड्डा घोडा संजर। क्यरट्रपंडदार जणिया। कोहि भसार-पंचभौगया। पंचालिहि पंडन पंच जहि। योहलेपन समचु-असाचु ताहि ।। दुच्चरित जि सोयहे मंडणउ । गज चितवंति जस खंडप सच्छेवमरण गंगेउ जई। तो तेण का किय कारगर ।। समावेण सरेण विजा प्रजउ । तो बोणु काई. रखें खयहो गउ ।। कप्पेण फण्ण जह जोसरह ।
तो कोंतिः वियंति किण्ण मरइ॥ घत्ता-"माणुस कलसेण होइ कुरुगुरु फलस-समग्भः ।
जवि विरुवा सुट्ट हिर पियंति ण बंधव ॥३॥ वत्ता—मगधनाथ (थेणिवा) पूछता है--- जन्म, जरा और मृत्यु का नाश करनेवाले हे आदरणीय! बताइए, जिन-मासन में हरिवंश की कशा का क्या स्वरूप है ? ॥२॥ ____ आज भी मन से प्रति नष्ट नहीं होती । सब लोगों में यह उल्टी बात सुनी जाती है कि नारायण नर की सेवा करता है, रथ होकता है, घोड़े की देखभाल करता है, धृतराष्ट्र और पंछु अदारमानित----अन्य स्त्री से उत्पन्न हैं (नियोग प्रथा के अनुसार, व्यास द्वारा, राजा विचित्र वीर्य की विधवाओं से उत्पन्न हैं।), जहां पांचाली के पांच पांडव कहे जाते हैं, वहां आप बतायें कि सत्य और असत्य यया है ? दुश्चरित्र ही जिन लोगों का मग्न है, वे यश के खंडित होने की चिप्ता नहीं करते। यदि भीष्म पितामह का मरण स्वच्छंद था, तो उन्होंने कालगति क्यों की? यदि धनुष और तीर से द्रोणाचार्य अजेय थे तो वह युद्ध में विनाश को क्यों प्राप्त हए? कर्ण यदि कान से निकले तो उन्हें जन्म देनेवाली कुन्ती की मौत क्यों नहीं हुई ?
पत्ता-भले ही मनुष्य घट से उत्पन्न होता हो, कौरवों के कुलगुरु अगस्त का जन्म घष्ट से हुआ हो; भाई अपने भाई से कितना ही विरुद्ध क्यों न हो जाए, वे एक दूसरे का रक्तपात नहीं करते ।।३।।
१. जा...अपरे जणिया । २. अब-बोलबउ सच्च समश्च तहिं ।