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ग्यारहवाँ सर्ग कंचनमाला के घर प्रद्युम्न का यौवनावस्या को प्राप्त होना । कंचनमाला द्वारा प्रद्युम्न को प्रज्ञप्ति-विद्या का दान । प्रशुम्ब के रूप-सौन्दर्य पर उसका मोहित होना। कंचनमाला की कामवेदना । प्रणय-माचना । इच्छा पूर्ण न होने से पति कालसंवर के समक्ष प्रधुम्ग पर लांछन लगाना । प्रद्युम्न को मारने के लिए कालसंबर के अनेक असफल षड्यन्त्र । तगी महामुनि नारद का आगमन और कालसंवर को वस्तुस्थिति से अवगत कराना ।
१२६-१३७
बारहवाँ सर्ग नारद के साथ कुमार प्रद्युम्न का आकाशमार्ग से जाना। मार्ग में कुरुराज की नगरी का आकाश से अवलोकन ! नगर-वर्णन । भानुकुमार की बारात को जाते हुए देखना । प्रद्युम्न का विमान से उतरकर नगर में प्रवेश । उसकी अनेक लीलाओं का वर्णन । पश्चात् आकाशमार्ग से द्वारिका पहुँचना । अनेक लीलाओं का प्रदर्णन। माता रुक्मिणी से मिलाप। अपरिचय की स्थिति में कृष्ण का प्रद्युम्न में युद्ध । नारद के द्वारा परिचय पाने पर पिता द्वारा पुत्र का आलिंगन ।
१३८-१५०
तेरहवां सर्ग कुरुराज की पुत्री उदधिमाला का प्रद्युम्न से विवाह। रुक्मिणी और सत्यभामा के बीच परस्पर आक्षेप । सत्यभामा द्वारा प्रमाण मांगना कि यह युवा रुक्मिणो का पत्र प्रधुम्न ही है । नारद द्वारा विस्तार से सारी घटना का उल्लेख । कालान्तर में यह ज्ञात होने पर कि मधु का भाई कैटभ स्वर्ग से अवतरित होकर कृष्ण का पुत्र होगा, यशस्वी गुत्र की माँ बनने की अभिलाषा से सत्यभामा द्वारा कृष्ण से समागम की याचना । प्रद्युम्न की युक्ति । जम्बुवती से शम्बु कुमार का जन्म । रुक्मिणी द्वारा अपने पुत्र के लिए विदर्भ राज से उसकी कन्या माधवी को मांगना । मना करने पर प्रद्युम्न और अम्बुकुमार द्वारा विदर्मराज की नगरी में उत्पात। विदर्भराज का क्रोधित होना । नारद द्वारा स्थिति स्पष्ट होने पर हर्ष । विवाहोत्सब ।
परिशिष्ट