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________________ तीसरा सर्ग स्वयंवर में पटहवादक के रूप में वसुदेव का द्वार पर स्थित होना । स्वयंवर का वर्णन । रोहिणी द्वारा वसुदेव का वरण । स्त्रयंवर में आये हुए विरोधी राजाओं से युद्ध। विजय-प्राप्ति। पुनः जरासन्ध की सेना से युद्ध। वसुदेव द्वारा सभी को पराजित करना । युद्ध में एकाएक अपने बड़े भाई समुद्रविजय को देखकर आक्रामक वृत्ति का त्याग । बाद में दोनों भाईयों का स्नेहमिलन । २४-३६ चौथा सर्ग राजा वसुदेव द्वारा धनुविद्या की शिक्षा। केस द्वारा शिष्यत्व ग्रहण करना। मगधनरेश जरासन्ध की घोषणा के अनुसार गुरु-शिष्य द्वारा सिंहरय को बांधकर लाना । परिणामस्वरूप जरासन्ध की पुत्री जीवंजसा से केस का विवाह । कंस द्वारा भी वसुदेव के साथ अपनी बहिन देवकी का विवाह । एक दिन अतिमुक्तक देवषि का चर्या के लिए मथुरा में प्रवेश। जीवंजसा द्वारा कुतूहलवश देवकी का रमण वस्त्र देवर्षि को दिखाना । देवर्षि का कोष । जरासन्ध और कंस की मृत्यु की भविष्यवाणी। भयभीत कंस का बसुदेव से वचन प्राप्त कर लेना कि देवकी के गर्भ से जो भी उत्पन्न होगा वह उसे चट्टान पर पछाड़कर मार डालेगा। चिन्तित देवकी और वसुदेव का अतिमुक्तक के पास जाना 1 देवधि से यह जानकर कि उनके छह पुत्र चरमशरीरी होंगे, उनकी मृत्यु नहीं होगी तथा सातवा पुत्र मथुरा और मगध के नरेगा के क्षय का कारण बनेगा, दम्पती को आत्मसन्तुष्टि । देवकी के कम से छह पुत्रों का जन्म, नंगमदेव द्वारा मलयगिरि पर ले जाकर उनका लालन-पालन । देवकी के सात पुत्र के रूप में कृष्ण का जन्म । शिशु के शुभ लक्षण । रात्रि में वसुदेव द्वारा शिशु को उठाकर ले जाना और यशोदा को देकर उनकी समाजात पुत्री लाकर केस को सौंप देना । गोकुलपुरी में हर्ष। ३५-४० पांचवा सर्ग मन्द के घर शिशु का लालन-पालन । कंस को सुचना । उसका शंकित हो उठना। कंस द्वारा सिद्ध देवियों को कृष्ण-बघ का आदेश । मायामयी पूतना द्वारा कृष्ण को विषपूर्ण स्तनपान कराना और पीड़ित होकर भाग जाना। कृष्णवध के लिए और भी अनेक विद्यादेवियों द्वारा रचे गये षड्यन्त्रों का असफल होना। कालान्तर में देवकी और बलराम का बालक कृष्ण को देखने के लिए गोकुल-गमन । देवकी की प्रसन्नता । इधर कंस का भय उत्तरोत्तर बढ़ते जाना । कंस के आदेश से बालक कृष्ण का नाग-शय्या पर लेटना। कृष्ण को मारने के लिए कंस द्वारा अनेक उपाय। ४९-६० छठा सर्ग यमुना के महादह सरोवर में कृष्ण का प्रवेश। कालियानाग का दमन । कंस के पक्ष
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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