________________
विषय अनुक्रम
पहला सर्ग मंगलाचरण । तीर्थकर नेमिनाथ का स्तवन । ग्रन्थ-रचना का उद्देश्य ! गौरीपूर और मथुरा के राजा 'शूर' और 'वीर' से क्रमशः अन्वय वृष्णि और नरपतिपरिण का जन्म । अन्धकवृष्णि और सुभद्रा से समृद्रविजय आदि दम पुत्रों की उत्पत्ति । दसवें पुत्र वसुदेव । दो पुत्रियां भी-कुन्ती और मद्री। मथुरा के राजा ना पतिवृष्णि और उनकी पत्नी पपावती से उग्रसेन आदि तीन पुत्र तथा गान्धारी नाम की एक कन्या की उत्पत्ति । मगधगरेश जरामन्ध की अनुपम दल-ऋद्धि । सुप्रनिष्ठ मुनि के उपदेश से अन्धकवृष्णि और मरपतिवृष्णि द्वारा दीक्षा ग्रहण । गोरीपुर में समुद्रविजम का तथा मथुरा में उग्रसेन का शासन । वसुदेव की कुमार अवस्था का वर्णन । वसुदेव के सौन्दर्य की नगर की युवतीजन पर व्यापक प्रतिक्रिया । समुद्रविजय द्वारा वसुदेव पर अनुशासन । वसुदेव का राजप्रासाद से चुपचाप निष्क्रमण । श्मशान में पहुंचकर एक चिता में आभूषणों को डालकर तथा घोड़े की पीठ पर पत्र बांधकर वहां से चल देना। पत्र और चिता में पड़े गहनों से परिवार और नगरवासियों द्वारा वसुदेव की मृत्यु हो जाने का अनुमान । उपर वसुदेव का विजयखेट नगर पहुँचना और सुग्रीव की कन्याओं के साथ पाणिग्रहण।
दूसरा सर्ग वसुदेव का महायन' में प्रवेश । महावन का वर्णन । सलिलावतं सरोवर में अचगाह्न । महागज का सामना । महागज को वश में कर लेना । अचिमाली और वायुधेग से मेंट । विजयाधपर्वत पर विद्याधर अशनिवेग की कन्या क्यामा में विवाह । रात्रि में अंगारक द्वारा विमान में वसुदेव का अपहरण । इमामा द्वारा ससन्य अनुसरण। विमान का पाहत हो जाना । वसुदेव का 'चम्पानगरी में प्रवेश । वासुपूज्य जिनेन्द्र की वन्दना । चम्पानगरी का वर्णन । वीणावादन में विजय प्राप्त कर नगर श्रेष्ठी चारुदत्त की काया गन्धर्वसेना से विवाह । विद्याधरवाला नीलजसा, सोमलक्ष्मी और मदनयेगा से पाणिग्रहण। सात सौ वर्ष पूरे होने पर अरिष्टनगर में लोहिताक्ष राजा की कन्या रोहिणी के स्वयंसर में वसुदेव का पहुँचना ।
१३-२३